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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir M र सुरयाभेषजं श्रियानमासरम् / तथा मासरमुपादाय सुरयाचयजतु / यशोभेषज श्रियासह इन्द्रेयजमानेवा / अश्विसरखतीन्ट्राश्च दैव्य नहोत्रा ईज्यमानाः पयःप्रभृतीनि व्यस्तु त्वमपि हेमनुष्यहोत: आज्यस्ययज // 38 // होतायक्षद्दनस्पतिम् / होतायजतु / वनस्पतिंशमितारं सोम परिसाघुतम्मधुव्यन्वाज्य॑स्यहोत_ज // 38 // होताव क्षुद्दनुस्प्पर्तिशमितारम् // होतावक्षुहनुस्प्पर्ति शमिता शुतक तुम्भीमन्नमुन्यु राजानव्याग्घ्रन्नम॑साभिश्वनाभाम सरस्वतीभुिष / गिन्द्रायदहऽइन्द्रियम्पयुङसोम परिसूतांघुतम्मधुव्यन्त्वाज्यस्यहो / 1 शतक्रतुम् वहुकर्माणम् / भीमनमन्यं राजानव्याघ्रम् / भीमभयानकम् मन्युंक्रोधात्मानम् / S राजानमरण्यानाम पशूनांव्याघ्रञ्च होतायजतु / नमसाश्विना नमसाहविषा / अश्विनौचहो तायजतु / भामसरस्वतीभिषगिंद्रायटुहइंट्रियम् / याच भामंक्रोधम् / सरस्वतीभिषक् इंद्राय दुहेदोग्धि इंट्रियञ्चताञ्च दैव्योहोतायजतु / अश्विसरस्वतीन्द्राश्च दैयेनहोवेज्यमाना: पयःप्रभृतीनि For Private And Personal
SR No.020861
Book TitleUvvatbhashya
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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