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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उचराध्य भाषांतर अभ्य०१९ ११६४॥ ॥११६४॥ * कथु छ के-'प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, तथा स्वाध्याय, ध्यान अने उत्सर्ग; आ आम्यंतर तपः कहेवाय छे. १ अनशन, ऊनोदरिता (पोताना खोराक करतां न्यून खावु ने)-वृचिसंक्षेपण (भिक्षानी मर्यादा ओछी करवी) रसनो त्याग, काय कलेश, संलीनता-(मन इंद्रियादिनो निरोधक); आ सघळु बाह्य तप हे कदेवाय छे, एम द्वादशविधबार प्रकारनां वप कर्ममां सावधान थयो ८९ निम्ममो निरहंकारो । निस्संगो चनगारवो ॥ समो य सव्वभूएसु । तसेसु थावरेसु य ॥ ९॥ निर्मम ममता वर्जित थयो, बळी निरहंकार-अहंकाररहित तेमज निःसंबवास ता भाभ्यंजर समवर्जीत तथा त्यक्तगास्व-त्रणे प्रकारना गारवयी | मुक्त, सर्व भूत-प्राणिमात्र-प्रस तथा स्थावरने विषये सम-समान परिणामवाको थयो । ९० ॥ व्याः-पुनः कीदृशो मृगापुत्रः निर्ममो वस्त्रपात्रादिषु ममत्वभावरहितः.पुनः कीदृशःनिरहंकारोऽहंकाररहितः पुनः कीदृशः ? निस्संगः, चामाभ्यंतरसंयोगरहितः पुनः कौशः? त्यक्तगारवो गारवनयरहितः, ऋद्धिगारवरसगारवसातागारव इत्यादिगर्वत्रयरहितः, पुनः कीदृशः ? सर्वभूतेषु समोरागद्वेषपरिहारात् समस्त४. प्राणिषु त्रसेषु स्थावरेषु च समस्तजीवेषु सदृशः ॥ ९॥ वळी ते मृगापुत्र केवो थयो ? निर्मम वसपात्रादिकमां ममता विनानो तेमज निरहंकार-अहंकार रहित, निस्संगबाह्य तथा आम्यंतर संग वर्जित, अने त्यक्तगारवऋद्धिगारव, रसगारव तथा सातागारच एकात्रणे गारव (महोटाइ) वगरनो होइ सर्वभूतोमा | बस तथा स्थावर रूप समस्त प्राणिओने विषयेन्सम रागद्वेष छोडी दीधेल होबाथी सर्व जीवोमा समानभावबाळो थयो॥९॥ KACKAGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
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