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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बमत्रम् -% SARKA अर्थ:-देव, दानव, गंधर्व, अने किंनर सहित यक्ष तथा सक्षसो भाम्या. अने त्यां अदृश्य भूतोनो-व्यतरोनो समागम धयो हतो. ॥ २०॥ भाषांतर व्या०-तत्र तस्मिन् प्रदेशे देवदानवगंधर्वा यक्षराक्षसकिन्नराः समागता इति शेषः च पुनस्तत्राऽदृश्यानांअभ्य०१५ भूतानां किलकिलव्यतरविशेषाणां समागमः संगम आसीत. ॥२०॥ ॥१३१५० अर्थः-तत्र-ते प्रदेशमा देव, दानव, गंधर्व, यक्ष राक्षस तथा किनर समागता:-आन्या ए पद शेष छे, एटले ए पदनो उपली गाथामांधी अभ्याहार करीलेवो. च-वळी त्यां अदृश्य भूतानम्-किल किल अने व्यंतर ए जानना भूतोनो समागम:- संगम थयो. २० मू०-पुच्छामि ते महाभाग । केसी गोयममधवी । तओ केमी वुवंतं तु । गोयमो इणमब्बवी ॥२१॥ अर्थ:-श्रीकेशी कुमारे श्रीगौतमने क के हे महाभाग्यशाली !हुँ आपने पूछुछु त्यारे बोलता श्रीकेशी कुमारने तो श्रीगोतमे आ प्रमाणे कम् व्या-तयोल्पमाह-तदा केशी गोतममब्रवीत्, किमब्रवीदित्याह-हे महाभाग! ते त्वामहं पृच्छामि, | यवा केशीकुमारणेत्युक्तं तदा केशीकुमारश्रमणं अवंतमिदमब्रवीत् ॥ २१॥ अर्थ:-तेओना संवादने कोछ-त्यारे श्रीकेशीकुमारे श्रीगौतमने कहा 'शुकधु ? ए कहेछे-हे महाभाग्यशाळी ! ते-आपने हुँ पूछु. ज्यारे श्रीकेशीकुमारे आ प्रमाणे कात्यारे श्रीगौतमे ए प्रमाणे कहेता श्रीकेशीकुमार साधुने आ का ॥२१॥ मूल-पुच्छ भंते जहित्य ते । केसि गोयममबवी। तओ केसी अणुनाए । गोयम इणमन्यवी ॥२२॥ अर्थ:-भीकेशीकमारे श्रीगौतमने कई के हे पूज्य ! आपना हृदयमा जे होय ते पूछो, त्यार पछी अनुष्का अपाबेला श्रीकेशीकुमारे श्रीगौतमने आ का. व्या०-गौतमो वदति, हे भवंत! हे पूज्यते तव यथेच्छ यत्तव येतस्यवभासते तश्वं पृच्छ मम प्रश्न कुरु।। AC- +SAX %EC% For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
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