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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उमराम्य मातील श्रीमतुतगचिताया जा करी विचधारमा विकार ॥१२८॥ श्रीसुधर्मास्वामी जंबूस्वामिनमाह-हे जंबू! अहं भगवदचसेति ब्रवीमि. ।। ५१ ॥ इति रथनेमीयं द्वाविंशतितममध्ययनं संपूर्ण. २७. इतिश्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रार्थदीपिकायामुपाध्यायश्रीलक्ष्मीकीर्तिगणिशिष्यलक्ष्मीवल्लभगणि विरचितायां द्वाविंशतितमस्याध्यनस्यार्थः संपूर्णः॥ श्रीरस्तु॥ अर्थ:-पंडितो तत्त्वमतियुक्त, तथा प्रकर्षे करी विचक्षण विवेकी पुरुषो प्रतिबुद्ध थइने एमन करेछे. शुं करेछे ? ते कहेछमोगोथी विशेषपणे निवृत्त थाय छ. कदाच कोइ प्रकारनो चित्तमा विकार उत्पन थाय तो पण पुनः फरीने पाछा कोइ धर्मात्मा पुरुषना धर्मोपदेशथी चित्तने निरुद्ध करीने विवेक पूर्वक भोगोथी निवृत्त थायछे. केनी पेठे ? जेम रथनेमि पुरुषोत्तम पूर्वमां चंचळ चिचवाला थइने पण पाछा राजीमती कृत धर्मोपदेशथी धर्मविषये स्थिरचित्त थया तेवीज रीते अन्य पुरुषोए पण निश्चलचित्तवाळा थQ, चंचळचित्तवाला सर्वथा न थq, 'एम हुं बोमुं हुआ छल्लु वाक्य श्रीसुधर्मस्वामी जंबूस्वामी प्रति बोल्या के-'हे जंबू ! हुं आ सघल्लु भगवद् वचनथी बोलु छु. ॥५१॥ इति स्थनेमीय नामर्नु बावीश अध्ययन पूर्ण थy. EMTOTTA, ETILATOALTERILITETE) CODA ALGEZICO TOZIMO ETRALHOTY TANITE THO- EHYTTERT KETIKULTETE TEATRIN ITATEMEN TENIRATI KLARATSIEHT HEUTETTE इति श्रीमान् लक्ष्मीकीतिगणिना शिष्यलक्ष्मीवल्लभारि विरचित श्रीमदुत्तराध्ययनी सत्रार्थदीपिका नामनी टीकामां पावीशमा स्थनेमीय नामक अध्ययननो अर्थ संपूर्ण थयो. Elementar a controllimitare TERETULCHITATHALUTE CITOHUTU MOTALATOS PERTAMA VAILETEJUHTE TANTA COMBATTERIERNATIONAL PARIETTERIA For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
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