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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन अन्य नरो क्रीडा करे छे. स्वामी मरी जाय एटले तेनां धनमां तथा तेनी स्त्रीयो साथै अन्य मनुष्यो हर्षबाळा तथा संतुष्ट बनी उत्तगध्यअलंकृत-आभूषणो धारण करी क्रीडा करे छे. केबुं धन ? परिरक्षितचोर अग्नि आदिकथी अनेक प्रकारे जाळवेलं, ज्यां मूधी ते भाषांतर त्रम जावे त्यां मधी धननी तथा खीयोनी रक्षा करे पण मवा पछी अन्य भोगवे छे, धन स्त्री वगेरे पदार्थों त्यांज रहे छे, कंदपण साथ inalअध्य०१८ ॥९४४॥ 8 अवतु नथी. शुं का ? विचारो मनुष्य दुःखे करी द्रव्य मेळवी अनेक यत्ने करी तेनी रक्षा करे; स्वीयोने पण पोताना जीवित १९४४॥ JE तुल गणा तनी रक्षा करे, वळो नाना प्रकारना आभूषणोबडे तेने राजी करे पण ज्यारे ए पुरुष पोते मरी जाय त्यारे एज द्रव्य वड तथा एज खाओनी साथे बीजा हृष्ट-हर्षयुक्त रोमांच वाळा तथा तुष्ट-मनमां खूब प्रसन्न यता, तेनाज अलंकारो वडे विभूषित बनीने रमे र क्रीडा करे छे. ज्यारे संसारनी आची स्थिति छे तो हे राजन तुं तपश्चर्या कर.१६ तेणावि जं कयं कम्मं । सुहं वा जड वाऽसुहं ।। कम्मुणा तेण संजुत्ता । गच्छइ उ परं भवं ॥ १७ ॥ तेणोवि.] ते मरनार जीवे पण जे शुभ अथवा अशुभ कर्म कर्यु होय ते कर्मे संयुक्त ते जीव पर भवने विषये जाय छे. १७ व्या०-तेनापि मरणान्मुखेन जीवेन यच्छुभं कमे, अथवाऽशुभं कम कृतं भवेत् , सुख दुःखं वोपार्जित स्यात्, तेन शुभाशुभलक्षणेन कर्मणा संयुक्तः सन् स जीवः परभवं गच्छति, एतावता जीवस्य साऽन्यत्किमपि नायाात, स्वोपार्जितं शुभाशुभं कर्म साथै समागच्छति ॥१॥ ते मरणोन्मुख जीवे जे शुभ कर्म अथवा अशुभ कर्म कयु होय, मुख अथवा दुःख ज मेळघु होय-ते शुभाशुभ लक्षण कर्मथा B संयुक्त थयेलो ते जीव परभवे जाय छे आ उपरथी जणायूं जे-जोवनो साथै अन्य कई पण ननथी, मात्र पाते करेला शुभा For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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