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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kababirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie उत्तराध्य | भाषांतर अध्य०१६ यन सूत्रम् ॥९०६॥ ॥९०६॥ بقية المنافسا للاحتفالية الحالية التالية लिंगव्यत्यय दोप नथी.१ मणपहायजणणि । कामरागविवणि ॥ बंभचेररओ भिक्खू । थीकहं तु विवजए ॥२॥ ब्रह्मचर्य पाळतो भिक्षु, मनने आह्वाद उत्पन्न करनारो तथा कामरागने वधारनारी एवी स्त्रीसंबंधी कथाने विशेष वर्जे-छोडीदीये. २ व्या०-अथ द्वितीयं-ब्रह्मचर्यरतो भिक्षुः स्त्रीकथां विवर्जयेत् , स्त्रीणां कथा स्त्रीकथा, तां त्यजेत्. कीदृशी कथा? मनःप्रह्लादजननीमंतःकरणस्य हर्षोत्पादिकां, पुनः कीदृशी ? कामरागविवर्धनी विषयरागस्यातिशयेन वृद्धिकी. ॥२॥ हवे बीजु कहे छे ब्रह्मचर्यमां रत-परायण थयेलो भिक्षु, साधु. स्त्री कथाने व दीये स्त्रीयोनी कथाने त्यजी दीये केवी कथा ? मनः महाद जननी अंतःकरणने हर्ष उत्पन्न करनारी तथा कामराग विवर्द्धिनी, अर्थात् विषयमा प्रीति अतिशय वधनारी.२ समं च संथवं थीहिं । संकहं च अभिक्खणं ॥ बंभचेररओ भिक्खू । निच्चसो परिवजए ॥ ३ ॥ स्त्रीयोनी साथे संस्तव परिचय, तेमज फरी फरीने तेओनी साथे संकथा, ब्रह्मचर्य परायण भिक्षु नित्यशः हमेशां परिवर्जे-त्यजी दीये. व्या-ब्रह्मचर्यरतो भिक्षुनित्यशो निरंतरं सर्वदा स्त्रीभिः सम संस्तवमर्थादेकासने स्थित्वा परिचयं, च पुनरभीक्ष्णं वारंवारं संकथां स्त्रीजातिभिः सह स्थित्वा बढी वार्ता परिवर्जयेत् , सर्वथा त्यजेत्. ॥ ३॥ ब्रह्मचर्य रत ब्रह्मचर्य पाळवानी प्रीतिवाळो भिक्षु, नित्यशः निरंतर सर्वदा स्त्रीयोनी साथे संस्तव अर्थात् तेओनी जोडे एक आसन उपर बेसीने परिचय तथा अतीक्ष्ण-वारंवार संकथा, स्त्रीजातिनी साथे स्थिति करी घणीक बातो करवानुं परिवर्जे सर्वथा त्यजी दीये. Donopoया For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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