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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषांतर अध्य०१६ ||८९२॥ JE कांक्षाथी लइ अहिं सूधीना पदोनो पूर्ववत् अर्थ छे.) ते कारणथी नवरंभाटे शंकादि दोषोनो प्रादुर्भाव थाय तेथी निश्चये निथउत्तराध्य साधु स्त्रीयोनी आगळे तथा केवळ स्वीयो संबंधीज कथा कथननज करे २ ए प्रमाणे आ द्वितीय ब्रह्मचर्य समाधिस्थान कहेवायुं आ पन सूत्रम् | द्विताया वाटिका समजवी हवे अतःपर तृतीया वाटिकानुं निरूपण कराय छे.॥८९२॥ नो निग्गंथो इत्थीहिं सद्धिं संनिसिज्जा, गए वियरत्ता हअइ से निग्गंथे. तं कहमिति चेत् आयरिय ad] आह-निग्गंथस्स खलु इत्थीहि साढू सन्निसिज्जागयस्स विहरमाणस्स यंभयारिस्स बंभचेरे संका वा० तम्हा खलु मो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसिज्जा, गए विहरेज्जा. ॥ ३ ॥ JE निग्रंथ-साधुए स्त्रीयोनी साथे निषद्या-धेसवाना आसन उपर गत-स्थित थइ विरहनार न थg. 'एम केम ?' आवी शंका कदाच AGI शिष्य करे पम घारी आचार्य कहे छे जे निग्रंथ खीयोनी साथे निषिद्या गत थइ विद्दरे ते ब्रह्मचारीने ब्रह्मचर्यमा शंका उद्भवे; [कांक्षा पदथी लइने धर्मथी भ्रष्ट थाय त्यां सुधीना पदोनो अर्थ पूर्ववत् समजी लेवानो छ.] तस्मात्-ते कारणथी निघेथे स्त्रीयोनी साथे निषिद्या उपर रही निश्चये न विहरखु. ३ व्याख्या-स निथो भवेत् , यः स्त्रीभिः सार्ध निषिद्या, निषीदत्यस्यामिति निषिद्या, पट्टिकापीठफलकचतुककाद्यासनं, तां निषिद्यां गतः स्थितः सन् विहर्ता अवस्थाता न भवेत. कोऽर्थः ? यः स्त्रीभिः सहकस्मिन्नासने नोपविशेत् स निग्रंथो भवेत्. अत्रायं संप्रदाय:-यत्रासने पुरा स्त्री उपविष्टा भवति, तत आसनात् स्त्रियामुत्थितायां सत्यां मुहर्तादनंतरं तदासनं साधोरुपविशनयोग्यं भवति 'तं कहमिति चेत् आयरिय आहे' अनयोः पदयोरर्थः For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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