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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिला انلایر उत्तराध्ययन सूत्रम् ३६ ॥८८९|| भाषांतर अध्य०१६ ॥८८९॥ الساونا وبناتنا والانتاج الحالي واللبناني مجانا स्त्रीदर्शनादश भावा उत्पद्यते. अथ पुनः केवलिप्रज्ञप्तात्केवलिप्रणीताद्धर्मात तचारित्ररूपाद् भ्रश्येद भ्रष्टो भवेत् , तस्मादेतेषां दृषणानां प्रादुर्भावात् स निग्रंथो नो भवेत्. इति प्रथमं ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान. एषा प्रथमा ब्रह्मचर्यतरोर्वाटिका. हे शिष्य! निश्चये स्त्री पशु तथा पंडग वगेरेथी संसक्त होय तेवा शयन तथा आसनने सेवतो होय ते निग्रंथ-साधु, भले ते ब्रह्मचर्य धारण करतो होय तो पण तेने ब्रह्मचर्य विषयमा शंका उत्पन्न थाय के-शुं आवो आश्रम विरुद्ध शयन तथा आसन सेवनारो ब्रह्मचारी होय ? के नहि ? पोताने तो स्त्री आदिकथी चित्त अत्यंत अपहृत थयेल होवाथी मिथ्यात्वोदय थवाने लीधेज 'स्त्रीसेवन मेथुन करवामां नवलक्ष जीवोनो वध थाय छे' आम जिनोए कहेलुं छे ते सत्य हशे के मिथ्या ? इत्यादिरूप संशय उत्पन्न थाय. वळी ब्रह्मचारीने कांक्षा-खी पशु पंडकादिकथी मैथुनेच्छा उपजे, तेम ब्रह्मचारी साधुने ब्रह्मचर्यमा बिचिकित्सा पण उद्भवे के-९ जे आ ब्रह्मचर्य पालन करवामां महोटुं कष्ट उठावू छु ते ब्रह्मचर्य कष्टनु कंइ फळ मने थशे के नहिं ? माटे सारुं तो ए छे के आ स्त्री आदिकनु सेवन कर. एना सेवनथी हमणां तो मने मुख उपजे छे' आवी मति उत्पन्न याय. अथवा भेद चारित्रनुं विदारण-विनाश थाय, अथवा उन्माद काम परवशताने पाये, अथवा तेवां स्त्री आदि सहित स्थानोने सेवता साधुने दीर्घकाळ लांबो समय भोगववा पडे तेवा अर्थात् स्त्री आदि सेवन करवाना अभिलाषाना उत्कर्षने लीधे आहारादिकमां अरुचि तथा निद्रारहितता वगेरे दोषोवडे रोग-दाहज्वरादि थाय तथा आतंक शीघ्र घात करे एवा शूल वगेरे (रोग तथा आतंकनो समाहार द्वंद्व छे.) शरीरमां थइ आवे. कारण के-कामनी अधिकताने कीधे कामिजनोना शरीरमां दश कामभावो उपजे छे. काछ के-प्रथम तो चिंता=चिंतन उद्भवे, पछी बीजी अवस्था दर्शनेच्छा थाय त्रीजो भाव दीर्घनिःश्वासो नाखे, चतुर्थ दशामां काम ज्वर आवे छे.१पंचम भाव गात्रोमां दाह For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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