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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir قلنا उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥१०७९॥ با این نوع भाषांतर अध्य०१८ ॥१०७९॥ لیفت تنقلات الهند प्रत्रजामि, तदायं राज्ये जनपदे मानुष्यकेषु कामभोगेषु मूछितोऽनाद्यनंत संमारकांतारं भ्रमिष्यति, ततः श्रेयः खलु मम निजकं भगिनीजातं केशिकुमार राज्ये स्थापयितुं. ___एक समये उदायन राजा पौषधवत लइ पौषधशाळामा पौषध पाळी विहरे के आगली रात्रनो समय छे त्यां तेना मनमां एवो अभिप्राय उत्पन्न थयो के-'त ग्राम आकर तथा नगर धन्य छे के ज्यां श्रमण भगवान श्रीमहावीर विहार करे छे. राजगृहेश्वर वगेरे जेओ श्रीमहावीर भगवान्नी समीपे रही केवळीए प्राप्त धर्मर्नु श्रवण करे छे. अने पंचाणु बतिक सप्तशिक्षा प्रतिक तथा द्वादशविध श्रावकधर्मने प्रतिपन्न थाय छे ते पण धन्य छे, बळी जेओ मुंडी बनी आगार छोडी अनगारिता सेवे के तेने पण धन्य छे. तेथीजो कदाच श्रमण भगवान् श्रीमहावीर पूर्वी अनुपूर्वीथी विचरता अहों आये तो हुँ पण भगवान्नी पासे पत्रज्या ग्रहण करूं.' राजा उदायननो आ अभिप्राय भगवाने जाण्यो. प्रातःकाळे चम्पानगरीथी नीकळी वीतभय नगरना भृगवन नापन। उद्यानमां समवस्त थया. त्यां पर्षद् (सभा) मळी, राजा उदायन पण त्यां भगवत्समीपे धर्म श्रवण करी घणो वर्ष पामी बोल्यो के-'हे स्वामिन् ! हूं आपनी पासे प्रवज्या लइश पण राज्य कोइने सोपी आधु' आटलू बोली भगवान्ने वंदी ते पोताना घर तरफ चाल्यो. भगवाने पण 'कंइ प्रतिबन्ध मा करोश' एटलुका. ते पछी इस्तीरत्न उपर चडी उदायन राजा पोताना राजमहेले आव्यो. आ वेळा उदायन राजाने एवो अध्यवसाय=निश्चय उपनो के-'जो हुं मारा पुत्र अभीचि कुमारने राज्य उपर स्थापीने दीक्षा लडं तो ते राज्य, देश, मनुष्यलोकना कामभोगो बगेरेमा मूर्छित बनी आ अनादि तथा अनन्त संसारमा भम्या करशे. माटे वधारे सारं तो ए छे । जे मारा भाणेज केशिकुमारने राज्य उपर स्थापित करूं. و دفعت تنقل لنقاط نقالی For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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