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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥ १०६८। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तपस्विना परम भक्त उदायन राजाने ते पेटडी आपी अने विद्युन्माली देवे कहेलुं वचन क. त्यां ब्राह्मणादिक घणा लोको मळ्या अने 'गोविन्दाय नमः' एम बोल्या पण ते पेटडी उवडी नहि. कोइ बोल्या के आमां देवाधिदेव चतुर्मुख ब्रह्मा के बीजा बोल्या के-आमां चतुर्भुज विष्णुज छे.' वळी कोइ बोल्या के-महेश्वर देवाधिदेव छे ते आ पेटडीमां छे आ वखते उदायन राजानी पट्टराणी चेटक राजानी पुत्री प्रभावती नामे हती ते श्रमणनी उपासक हती ते त्यां आवी तेणीए ते पेटडीनी पासे एम बोली के 'राग द्वेष तथा मोह जेना गत थया छे बळी जे सर्वज्ञ होइ अष्ट प्रतिहार्य संयुक्त छे एवा देवाधिदेव गुरु शीघ्र मने दर्शन दीओ.' आम बोलीने तेणीए ए पेटडी उपर पोताने हाये कुहाडानो प्रहार कर्यो के ते पेटडी उघडी गइ एटले अंदर रहेळी अत्यंत सुंदर तथा न करमाय तेवां पुष्पोनी माळावडे शोभती श्रीवर्द्धमानस्वामिनी प्रतिमा जोवामां आवी. जिनशासननी उन्नति यह प्रभावती घणीज आनन्द पामती बोली - " हे सर्वज्ञ ! हे सौम्यदर्शन ! अपुण्यभव भविकजनना मनने आनन्द देनारा हे चिन्तामणिरूप जगद्गुरु ! हे अकलङ्क जिनवीर ! तमे जय पामो. १" पछी प्रभावतीए अंतःपुरमा चैत्य बनवावी तेमां ए प्रतिमा स्थापित करी. आ प्रतिमानी प्रभावतो त्रिकाळ पूजा करवा लागी. अन्यदा प्रभावती राज्ञी तत्प्रतिमायाः पुरो नृत्यति, राजा च वीणां वादयति तदानीं स राजा तस्य मस्तकं न न पश्यति, राज्ञोऽधृतिर्जाता, हस्ताद्वीगा पतिता, राज्ञ्या पृष्टं किं मया दुष्टं नर्तित ? राजा मौनमालम्य स्थितः राज्या अतिनिर्बधेन स उक्तवान्, यत्तव महतकमपश्यन्नहं व्याकुलीभूतो हस्तद्वीणां पातितवान् सा भगति मया सुचिरं श्रधर्मः पलितः, न किंचिन्मम मरणाङ्गीतिरस्ति अन्ददा सत्प्रतिमापूजनमर्थः स्नाता सा राजीव For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य०१८ ॥ १०६८।
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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