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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषांतर अध्य०१८ ॥१०४९।। उचराध्य-1BER मने आवी ऋद्धि प्राप्त थइ छे तो हधे परलोक हित कराय तो सार- रे-"पुरुषे जनाळा तथा शियाळाना आठ मासमाए पन सूत्रम् काम करी लेवु जोइए के अंतेचोमासामा मुखे रहेवाय; आखा दिवसमा एवं काम करी लेबु के अंते रात्रे मुखे सुवाय,पोतानी ॥१०४९॥ उमरना आगला भागमा अर्थात पचास वर्षमा एवं काम करी लेवु के अंतेवृद्धावस्थामा सीदाबुन पडे,अने आखी जींदगीमां एवं साधन करी लेवु के परलोकमां सद्गति पमाय." आवो विचार करी पुत्रने राज्य उपर बेसाडी पोते नीकळी गया अने क्रमे केवळज्ञान उत्पन्न थवाथी सिद्धि पाम्या. तेमनु शरीर पंदर धनुःप्रमाण उंचु इतु अने ए हरिषेण चक्रवर्तीए दश हजार वर्ष आ. युष्य भोगन्थु आ प्रमाणे हरिषेणर्नु दृष्टांत पूर्ण थयु. अनिओ रायसहस्सेहिं । सुपरिचाइ दमं चरे ।। जयनामो जिनक्वायं । पत्तो गहमणुतरं ।। ४३ ।। | [अनिओ०] हजारो राजा जेनी पाछळ चालता पवा जय नामना चक्रवत्ति, सम्यक परित्याग करी जिने आख्यात-कहेला दमचारिने आचरी अने अनुसर गति-मोक्षगतिने प्राप्त थया. ४३ . व्या-जयनामैकादशश्चक्री जिनाख्यातं जिनोक्तं धर्म चरित्वा चानुत्तरां गति प्राप्तः, कीदृशो जयनामा ? राजसहस्रैरन्वितो नृपसहस्रेण परिवृतो जैनी दीक्षामचरत. पुनः कीदृशो जयनामा? सुपरित्यागी सम्यक परित्यागी.४३ जय नामना अगीयारमा चक्रवत्ति जिनाख्यात-जिनेश्वरे प्ररूपणा करेला धर्मने आचरीने अनुत्तर गति-मोक्षगतिने प्राप्त थया. जयनामा केवा ? हजारो राजाओए अन्वित परिवारित जैनी दीक्षा आचरीने तथा सम्यक् प्रकारे परित्याग करीने. ४३ अत्र जयनामचक्रवर्तिदृष्टांत:-राजगृहे नगरे वप्राया रायाः कुक्षौ चतुर्दशस्वमसूचितो जयनामा पुत्रो जातः For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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