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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥ ९६३॥ www.kobatirth.org वस्तु पण विनाश पामे छे. कछु छे के 'मनगमतुं अशन पान तथा विविध खावाना स्वादिम पदार्थो शरीर संगम पामीने सर्व पण अशुचि थाय छे १' 'सारं वस्त्र, सारां पुष्प तथा सारा गंध अनुलेपन तेमज श्रेष्ठ शयन तथा आसन शरीरबडे विनष्ट थाय छे २ सर्व रोगांनुं निधान, कृतन अस्थिर आ पंच अशुभ भूतमय शरीर छे तेनुं प्रतिकर्म अनर्थकज के ३' तेथी आ शरीरने माटे अनेक पापकर्म करने आ मनुष्य जन्म हारी बेसवुं सर्वथा युक्त नथी कछु छे के 'जे मनुष्य केवळ इन्द्रियोने अर्थे आ मानुष्य जन्म खपात्री नाखे छे ते समुद्रमां वहाणमां बेसी लोढां माटे वहाणने मांगे छे सूत्र काढी लेवा बैहूर्य मणीने तोडे छे, अने राख माटे उत्तम चदनने वाळी नाखे छे १' आवा आवा विचार करता ते भरत चक्रीने भाव चारित्रनी प्राप्ति थतां शुभाध्यवसायनी वृद्धी थइ क्षपकश्रेणीने प्रपन्न थया तेथी केवळज्ञान उत्पन्न थयुं. शकस्तत्र समायातः, कथयति च द्रव्यलिंगं प्रपद्यस्व ? पेन दीक्षोत्सवं करोमि ततो भरतकेवलिना स्वमस्तके पंचमष्टिको लोचः कृतः, शासनदेवतया च रजोहरणोपकरणानि दत्तानि दशसहस्रराजभिः समं प्रवजितो भरतः, शेषचक्रिणस्तु सहस्रपरिवारण मत्रजिताः ततः शक्रेण वंदितोऽसौ ग्रामाकरनगरेषु भ्रमन् भव्यसत्वान् प्रतियोधयन् एक पूर्वलक्षं गाव केवलिपर्यायं पालयत्वा परिनिर्वृतः, तत्पट्टे च शक्रेणादित्ययशा नृपोऽभिषिक्तः इति भरतांतः ॥ ३४ ॥ पुनस्तदेव महापुरुषदृष्टांतेन दृढयति इन्द्र आव्या अनेक के द्रव्यलिंगने स्वीकारो जेथी अमे दीक्षोत्सव करीये. ते पछी भरतकेवळीये पोताना मस्तक उपर पांच मुष्टिनो लोच कर्यो; शासन देवताए तेने रजोहरणादिक उपकरणो दीघां; अने दश सहस्र राजाओ सहित भरत मत्रजित For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 39387 भाषांतर अध्य०१८ ॥ ९६३॥
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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