________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जलवहनमार्गण सह तरणमेव मम श्रेयस्तथा त्वमपि माभूरित्यर्थः ॥३३॥ अथ भृगुपुरोहित आहउत्तराध्य
भाषांतर पनसूत्रम् फरीने ब्राह्मणी कहे छे-हे पुरोहित ! तमे मारी साथे रहीने भोगोने भोगवो 'ह' ए पद अलंकारार्थ छे. 'ण' ए पण अलं- अध्य०१४
BS कारार्थज छे. हे स्वामिन ! तमे पाछा सौदर्यनमारा सगा भाइओने तेमज सहु सहुने घरे बेठेला स्वजन संबंधीओने संभार शोमां. ॥८४१॥
B |८४१॥ शुं का? तमे मुनि थइ पाछळथी दुःखी थइने तमारा गृहस्थ बंधुओने संभारशो. माटे मारी साथे विषयमुखो भोगवता घरेज रहो. कारणके निश्चये भिक्षाचर्या विहार दुःखहेतुज छे. ज्यारे भिक्षाचरपणुं सहन नहि थाय त्यारे तमे गृहवासने याद करशो. (एवो भाव छे.) केनी पेठे तमे सोदरोने याद करशो ? ते कहे ठे-जेम जीर्ण-वृद्ध थयेलो हंस प्रतिस्त्रोतोगामी सामे पूरे तरतो तरतो ज्यारे । तरतां थाके पछी प्रवाह चहेतो होय ते वाजु तरवाने याद करे छे. मनमा खिन्न थइ-'अरे में जलपवाहने सामे तरवानो आरंभ का कर्यो ? जेम जळ बहेतु होय ते मार्गे तरवू एज मारुं श्रेयस्कर छे.' एम जाणे. तेम तमे पण थजोमां. ३३ जहा य भोई तणुजं भुगो। निम्मोयणि हिच्च पलाइ मुतो। एमेए तेहिं जाया पयहनि भोए । कहं नाणुगमिस्ममिको | हे भगवति ! जेम भुजंग-सर्प तनुज-पोताना शरीरधी उत्पन्न थयेल निमोचनी-कांचळीने त्यजीने मुक्त थयेलो पळे छे-चाल्यो जाय छे | एज प्रमाणे पुत्रो भोगने छेक त्यजे छ तो पछी हु ते पुत्रोने एकलो केम न अनुसरु ? ३४ ।
व्या०-भोई इति हे भगवति! हे ब्राह्मणि ! भुजगः सर्पस्तनुजां शरीरादुत्पन्नां निर्मोचनीं निर्मोचकं कंचुकं THE हित्वा मुक्तः सन् प्रयाति, एवमेती जाती पुत्री भोगान् प्रजहीतः. तो भोगत्यागिनो पुत्रोप्रत्यहमेक की सन् कथं नानुarl गमिष्यामि ? पुत्राभ्यां विहीनस्यैकाकिनो मम कीदृशो गृहवासः? धन्यौ तौ पुत्रौ यौ तरुणावेव कंचुकमिव विषय
सर्पस्तनुजां
पुत्रौप्रत्यहमेकानिध विषय
For Private and Personal Use Only