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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandi भिक्षा मागता फरीशुंभिक्षुओ धइ . २६ त्यारे ते पुत्रो पिता प्रत्ये कहे ठे-- उत्तराध्य भाषांतर मनमम JE जस्सस्थि मच्चुणा सक्ख । जस्स बत्थि पलायणं । जो जाणइन मरिस्सामि । सोह कंखे सुए सिया ।। २७॥ 5EER जेने मृत्यु साथे सख्य मैत्री होय, अथवा जेने पलायन-एटले नासी जवान होय, तथा जे जाण तो होय के हुँ मरीश नहि तेज ॥८३४॥ ५५ मनुष्य एम आकांक्षा करे के श्वः आवती काले (आ काम) थशे. २७ । 1 ८३४० व्य०-हे तात ! हु इति निश्चयेन स एव पुरुष इति कांक्षतीति प्रार्थयति. सुए इति श्व आगामिदिने प्रभाते इदं स्यात् , अद्य न जातं तर्हि किं ? कल्ये स्यादित्यर्थः. इति स चिंतयति. स इति कः? यस्य पुरुषस्य मृत्युना सह कालेन cl सह सख्यं मित्रत्वमस्ति, य एवं जानाति मृत्युर्मम सखा वर्तते. च शब्दः पुनरर्थे पुनर्यस्य पुरुषस्य मृत्योः पलायन मस्ति यः पुरुष एवं जानाति मृत्युमें मम किं करिष्यति ? यदा मृत्युरायास्यति तदाहं प्रपलाय्य कुत्रचिदन्यत्र यास्यामि, B अहं मृत्युगोचरो न भविष्यामि. पुनर्य एवं जानाति, अहं न मरिष्यामि, अहं चिरंजीव्यस्मि. ।। २७ ।। हे तात ! हु निश्चये तेज पुरुष एम इच्छे-चाहे-मनमां पार्थन करे के-वावती काले प्रभाते आ थाय. आज न थथु तो शुं ? काले थशे. (एचो अर्थ छे.) एम ते धारे छे; ते कोण ? जे पुरुषने मृत्युना साथे काळनी जोडे सख्य=मित्रता होय, जे एम जाणतो होय के मृत्यु तो मारो सखा छे. ( अत्रे 'च' शब्द 'पुनः'ना अर्थमा छे ) वळी जे पुरुपने मृत्युथी पलायन होय; जे पुरुष एम जाने के मृत्यु मने शुकरशे ? ज्यारे मृत्यु आवशे त्यारे हुँ पालयन करीने क्यांक अन्य ठेकाणे जतो रहीश; मृत्युना झपाटामां आवीश नहि फरी ते एम जाणतो होय के है मरीशज नहिःहै तो चिरंजीवी छ.२७ स For Private and Personal Use Only
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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