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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir च लोकापवादो न भवति? दीर्घनृपेणोक्तं सांप्रतमस्य विवाहः क्रियते, पश्चात्सर्वमावयोचिंतितं भविष्यति, ततस्ताभ्यां उत्तराध्य ब्रह्मदत्तस्य मित्रस्य कस्यचिद्राज्ञः कन्यायाः पाणिग्रहणं कारितं, तयोः शयनार्थमनेकस्तंभशतसन्निविष्टं गूढनिर्गन- Bभाषांतर पनसूत्रम् JE द्वारं जतुगृहं कारितं. अध्य०१३ ॥७२॥ । ब्रह्मदत्तकुमार मातानुं दुश्चरित्र सहन न थवाथी एक वखते कागडो तथा कोयल आ बेतुं जोडुं शूलना अग्र उपर परोवीने ॥७२५॥ माता तथा दीर्घराजाने बताव्यु अने कह्यु के-'जे कोइ आधु आचरण करशे तेनो हुँ निग्रह करीश,' आटलं बोली कुमार बहार Ka गयो. आवां वे त्रण दृष्टांतो वडे ऋण दिवस सुधी तेणे ए प्रमाणे कयु अने कह्यु ते उपरथी दीर्घ राजाए शंकित बनी चूलनीने र | कयु के-'आपण बन्नेनुं स्वरूप कुमारे जाण्यु छे, हुं कागडो अने तुं कोयल ए दृष्टांत कुमारे जणाव्यो.' चुलनी बोली के-'ए वाळक तो जेम तेम बोले बके. आ बाबतमां कंइ शंका करवानी नथी.' त्यारे घृत-निर्लज-दीर्घराजा बोल्यो के-'तुं तारा पुत्रना DE BE वात्सल्यने लीधे पोतानुं कंइ पण हित नथी जाणी शकतो. आ कुमार अवश्य आपण बन्नेमां विघ्न करनार होवाथी ए अवश्य Filमरावी नाखवा योग्य छे. हुं तारे आधीन छ तो पुत्रो घणाय थइ रहेशे.' आ प्रमाणे दीर्घ नृपर्नु वचन ते राणीए अंगीकार कयु. कयु छ के-महिला स्त्री आळतुं कुळ घर छे, महिला लोकमां दुश्चरितनुं क्षेत्र छे, महिला दुर्गतिनुं द्वार छ भने महिला सर्व अनभानुं जन्म स्थान छे. १ ए भर्ताने मारे, सुतने हणे, अर्थनो प्रणाश करे, रागातुर पापा महिला पोताना घरने पण परजाळे. २ चुलनी बोली के ए पुत्रने केम मारवा? अने लोकापवाद केम न थाय? त्यारे दीर्घतृपे कयु के-'इमणां तो तेना विवाह करीये पछी || | आपणुं धारेलु वधुं यइ रहेशे.' ते पछी ए चुलनी तथा दीर्घराजा बन्नेये मली कोइ मित्र राजानी कन्या साथे ब्रह्मदत्तना विवाह For Private and Personal Use Only
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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