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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महप्पसाया इसिणो हवंति । हुँ मुंगी कोपरा हेवंति ॥ ३१ ॥ उत्तराध्य- [भते] हे भगवान् (मूडेहि) मूढ (अयाणएहि) अज्ञानी [बलेहि] आ बाळकोए [ज'] जे (हीलीमा) तमारी हीलना करी [तस्स] यनसनम BET भाषांतर ते (खमाह) क्षमा करो. कारण के (इसिणो) ऋषिओ (महप्पसाग) महा प्रसादवाळा (हवं ति) होय छे. (हु) परतु (मुणी) मुनिश्री अध्य०१२ [कोवपरा] कोपयुक्त [न हवं ति] होता नथी. ३१ al व्या०-भो पूज्याः! भो भदंताः! एभिर्यालैः शिशुभिमूढः कषायमोहनीयवशगेमबंहिताहितविवेकविकलैः ॥६९३॥ जं इति यस्मात्कारणात् गूयमवहीलिता अवगणिताः, तस्स इति तस्य अवहीलनस्यापराध क्षमध्वं? ऋषियो महाप्रJEJ सादा भवंति, अतीवनिर्मलचेतसो भवति. न पुनर्मुनयः कोपपराः क्रोधपरायणा भवंति, मुनयः क्षमावतो भवंति.३१DE तदा मुनिः किमवादीदित्याह हे पूज्य भदंत ! कपाय महोहनीयने परवश बनेला तथा पोताना हित अहितना विवेक वगरना आ मूढ बाळ कोये तमारी जे हेलना अवगणना करी तेना अपराधने क्षमा करो. ऋपिओ महाप्रसाद अत्यंत निर्मल चित्त होय छे, मुनियो क्रोधपरायण धता नथी. किंतु क्षमावारा होय छे. ३१ पुचि च इहि च अणागयं च । मणप्पओसोने मे अस्थि कोइ ।। जक्खा उ वेयावडियं करेंति । तम्हा हु ऐए निहंया कुमारा ॥ ३२ ।। [पुयि च पहेला [इण्डि' च) तथा हमणा (अणागय च) भविष्यमां (मे) मारे [कोइ] कांदपण (मणप्पभोसो) मननो प्रदेष यमनी Fer Private and Personal Use Only
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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