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________________ K Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्यपन सूत्रम् ॥५०॥ भाषांतर अध्ययन ॥५०॥ मूलम-(सपुरजणवयं) बीजां नगरो भने जन पद (मिहिलं) मिथीला नगरीने (बल) चतुरंग सेनाने तथा (अरोह) अवगेहने (च) तथा (परिअणं) परिवारनें (सब्ब) ए सर्वेने (चिच्चा) तजी दहने (अभिनिक्खंतो) दीक्षा लीधेला (भयब) भगवान-नमिराजर्षिए (गगत') द्रव्यथी एकांत दु' कोइनो नथी. इत्यादिक भावनाओवडे (अहिंडिओ) आश्रय कों.४ व्या०--स भगवान् माहात्म्यवान् यशस्वी नमिराजा एकांतं द्रव्यतो वनखंडादिकं भावतश्च सर्वसंयोगरहितत्वं, एक एवाहमित्यतो निश्चयस्तमाश्रितः, पुनः कीदृशो नमिराजा? अभिनि:क्रांतः, अभि समंतान्निःक्रांतः संसारान्निस्मृतः, किं कृत्वा? मिथिलां सपुरजनपदां, तथा यलं, तथावरोधमंतःपुरं तथा परिजनं सर्व त्यक्त्वा, पुराणि च जनपदाश्च पुरजनपदाः, तैः सह वर्तत इति सपुरजनपदा, तां सपुरजनपदां, एतादृशीं मिथिलापुरी हित्वा. ॥४॥ ___ अर्थ-ते भगवान् माहात्म्यवान् यशस्वी नमिराजा, एकांत=द्रव्यथी वनपदेशादि, अने भावथी सर्व संयोग रहितपणु, | एटले हुँ एकलोज छु एवा निश्चयने [अधिष्ठित] आश्रित बनी, पुरनगरो तथा जनपद-देश इत्यादि सहित मिथिलाने तथा बल= सैन्य अने अवरोध जनानामांनी राणीयोने त्यजीने अभिसर्वथी निष्क्रान्त=निर्गत थयो. अर्थात् समग्र संसार बंधनथी बहार नीकळ्यो. कोलाहलँगप्भूयं । आसी मिहिलाइ पवेयंतमि ॥ तइयो राईरिसिमि । नैमिमि अभिनिक्खमंतमि ॥५॥ मुलम्-[तइया] ते वखते (पब्वय तम्मि) प्रव्रज्यो लीधेला (नमिम्मि) नमि रायरिसिम्मि] राजर्षि (अभिनिक्खमतम्मि) घरबहार नीकळे सते (मिहिलाइ) मिधिलाने विषे (कोलाहल गम्भू) कोलाहल थयो के जेमां एवुघर (भासी) थयु-कोलाहलथी व्याप्त थयु. LABDULUl For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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