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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie उत्तरा सटोक ॥८४५॥ FREEKAR-SOCID- 15 मे कहसु गोयमा ॥ ४९ ॥ व्याख्या-अर्थस्तु पूर्ववत. ॥ ४९ ॥ ॥ मूलम् ॥-संपजलिया घोरा । अग्गी चिठ्ठइ गोयमा ॥ जे डहति सरीरत्था । कहं विज्झाविया तुमे ॥५० व्याख्या हे गौतम ! संप्रज्वलिता जाज्वल्यमाना घोरा भीषणा अग्नयः संसारे तिष्टंति, येऽग्नयः शरीरस्थान् अर्थात् प्राणिनो जीवान् दहंति ज्वालयंति, तेऽग्नयस्त्वया कथं विध्यापिताः? कथं शामिता इत्यर्थः ॥ ५० ॥ ॥ मूलम् ॥-महामेहप्पभूयाओ। गिज्झ वारि जलुत्तमं ॥ सिंचामि सययं ते उ। सित्ता नेव | डहंति मे ॥५१॥ व्याख्या हे केशीमुने! महामेघप्रभूतान्महामेघसमुत्पन्नादर्थान्महानदीप्रवाहा द्वारि पानीयं गृहीत्वा तानग्नीन् सततं निरंतरं सिंचामि. तेऽग्नयो जलेन सिक्ताः संतो मां नैव दहति. | कथंभृतं तद्वारि ? ' जल्लुत्तमं' जलोत्तम, सर्वेषु जलेषु मेघोदकस्यैवोत्तमत्वात्. ॥ ५१ ॥ ॥ मूलम् ॥-अग्गी इइ के वुत्ते । केसी गोयममववी ॥ तओ केसी वुवंतं तु । गोयमो। है| इणमववी ॥ ५२ ॥ व्याख्या-तदा केशीश्रमणो गौतममिदमब्रवीत्, हे गौतम ! तेऽग्नय इति के CE-CR % 1%2CCE- ४५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020852
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1929
Total Pages1306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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