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तुलसी शब्द-कोश
सेनप: सं०पु० (सं० सैन्यप) । सेनापति । मा० २.२४२
सेना :
सं० [स्त्री० (सं० ) । फोज (गज, रथ, अश्व और पदाति के चार अङ्ग होते हैं) । मा० ४.२२.३
सेनापति : सं०पुं० (सं० ) । सेनानायक, संचालक सेनाधिकारी । मा० ६.३६.५ सेनि, नी : श्रेनी । पङि क्त, समूह । 'हंस-सेनि संकुल ।' गी० ७.४.४ सेनु : सेन + कए । संन्य समुदाय, सैनिक वर्ग । 'एहि बिधि भरतु सेनु सब संगा । "
मा० २.१६७.३ सेबरा : सं०पु० (सं० श्वेतपट > प्रा० सेवडा) । श्वेताम्बर जैन ( लक्षणा से ) प्रच्छन्न दुराचारी साधु । 'सुरा सेबरा आदरहिं निदहि सुरसरि बारि ।' दो० ३२६ ( यहाँ 'सेबरा' वामाचारी का तात्पर्य रखता है) ।
सेबी : ( समासान्त में ) वि०पु० (सं० सेविन्) । सेवाशील; सेवाकारी । 'खग मृग चरन सरोरुह सेबी |' मा० २.५६.३
सेव्य : सेव्य । मा० ५.४७
सेमर : सेंबर । विन० १९७.२
सेवें: सेएँ । सेवा करने से । कवि० ७.१४०
सेये : सेए । 'सेये सीताराम नहि ।' दो० ६६
सेर : सं०पु० (सं०) । सोलह छटांक का परिमाण विशेष (जो आजकल के किलोग्राम से कुछ कम होता है ) । 'कहिअ सुमेर कि सेर सम ।' मा० २.२८८ सेल, ला : सं०पु० ( प्रा० ) । आयुधविशेष ( शक्ति, साँग ) । मा० २.१६१.५. 'सनमुख राम सहेउ सोइ सेला ।' मा० ६.६४.२
सेल्ही : सं० स्त्री० । मालाकार गंडा ( जिसे जोगड़े पहनते हैं) । 'ओझरी की झोरी काँधे तन की सेल्ही बाँधे ।' कवि० ६.५०
सेव : ( १ ) सेवा | 'जो कर भूसुर सेव ।' मा० ३.३३ ( २ ) सेवइ । 'अधम सो नारि जो सेवन तेही । मा० ३.५.६
'सेव सेवइ : आ० प्रए० (सं० सेवते > प्रा० सेवइ ) । सेवा करता ती है | 'सेवइ सबन्हि मान मद नाहीं ।' मा० ७.२४.८
सेबउँ : आ०उए० । सेवा करता हूं ( था ) । 'तेहि सेवउँ मैं कपट समेता ।' मा०
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७.१०५.५
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सेवक : वि०पु० (सं०) । (१) परिचारक । ' सेवक सचिव सुमंत्र बोलाए ।' मा० २. ५.१ (२) दास्य भावना का भक्त ( जो जीव का सहज स्वरूप मान्य है ) | 'एहि ते तव सेवक होत मुदा ।' मा० ७.१४.१४
सेवकनि, वह : सेवक + संब० । सेवकों (को, से) 'राम कहा सेवकन्ह बुलाई ।'
मा० ७.११.२; मा० २.१८७