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तुलसी शब्द-कोश
वाला=अपने अनुकूल । बिधि के सुढर सुदाय के ।' गी० १.६७.४ (नियति
की अनुकूलता में दांव की अनुकूलता)। सुढार : वि० । ऊँचे-नीचे क्रम से ढाला हुआ या ढाली हुआ; उत्तम रीति से ढाल
कर बनाया हुआ-बनायी हुई। 'महि गच कांच सुढार ।' गी० ७.१६.३ सुत : सं०० (सं.)। पुत्र । मा० १.८२ सुतंत्र : वि० (सं० स्वतन्त्र)। (१) स्वाधीन । 'राखेसि कोउ न सुतंत्र ।' मा०
१.१८२ क (२) स्वर, स्वच्छन्द, मनचाही गति लेने वाला-वाली; निर्मर्याद । 'जिमि सुतंत्र भएँ बिगरहिं नारी।' मा० ४.१५.७ (३) निरपेक्ष ; जिसे अपने से बाहर का कुछ भी लेना न हो; स्वयंसिद्ध+ स्वयंसाध्य ; फलस्वरूप । 'भक्ति
सुतंत्र सकल सुख खानी।' मा० ७.४५.५ सुतघाती : (दे० घाती) । पुत्र का बध करने वाला । मा० ६.८३.२ सुतन : उत्तम तन ; स्वस्थ शरीर । दो० ५६८ सुतनि, न्ह : सुत+संब० । पुत्रों । 'सुतनि सहित दसरथहि देखिहौं ।' गी० १.४८.२ ___ 'आवत सुतन्ह समेत ।' मा० १.३०७ सुतबधुन : सुतबधू+संब० । पुत्रवधुओं । 'सुत सुतबधुन समेत ।' रा०प्र० ४.७६ सुतबधू : सं०स्त्री० (सं० सुतवधू) । पुत्रवधू, पतोहू । मा० २.२८३.१ सुतबहु : सुतबधू (सं० वधू>वहू) । 'गे जनवास राउ संग सुत सुतबहु ।' जा०म०
१५८ सुतमाल : (दे० तमाल) उत्तम सदृढ़ तमाल वृक्ष । गी० १.६६.४ सुतरु : उत्तम- शुभ-माङ्गलिक वृक्ष । मा० १.३०३.७ सुतहार : सं०० (स० सूत्रधार>प्रा० सुत्तहार)। (१) नाट्य निर्देशक । (२) बढ़ई
(जो लकड़े नापने और चीरने के निमित्त सूत्र रखता है)। 'कनक रतनमय
पालनो रच्यो मनहुं मार सुतहार ।' गी० १.२२.१ सतहि : (१) पुत्र को । 'बरबस राज सुतहि तब दीन्हा ।' मा० १.१४३.१ (२) पुत्र
का । 'अपर सुतहि अरिमर्दन नामा ।' मा० १.१५३.६ सुता : सं० स्त्री० (सं०) । पुत्री । मा० १.६६ सुताति : वि०स्त्री० (सं० सु-तप्ता>प्रा० सु-तत्ती) । अतिशय उष्ण; अति दाहक ।
'रघुबर कीरति सज्जननि सीतल, खलनि सुताति ' दो० १६४ सुतापस : उत्तम निश्छल तपस्वी । मा० ७.१२४.६ सतिय : (दे० तिय) उत्तम स्त्री; सती सुन्दर स्त्री। मा० १.२०.६ सुतीछन : सं०० (सं० सुतीक्ष्ण) । मुनिविशेष । मा० ३.१०.१ सुतीछी : वि०स्त्री० (सं० सुतीक्ष्णा) । अत्यन्त तीखी, तीव्र प्रभाव वाली, हृदय
द्रावक । 'नगर ब्यापि गइ बात सुतीछी ।' मा० २.४६.६ सुतीय : सुतिय । मा० २.१६६
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