SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 527
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1072 तुलसी शब्द-कोश सोसावली : सं०स्त्री० (सं० शीर्षावली>प्रा० सीसावली)। सिरों की श्रेणी, शिरः समूह । विन० १८.४ । सीसु, सू : सीस+कए० । सिर । मा० १.३३१, २१७६ सुघाइ : पूकृ० (सं० शिवयित्वा>प्रा० सुघाविअ>अ. सुधावि) । सुधाकर, घ्राणग्राह्य बनाकर । 'जरी सुघाइ कूबरी कौतुक करि जोगी बघाजुड़ानी ।' कृ०४७ सु : (१) अव्यय (सं.)। उत्तम । इसके बहुत से एसे प्रयोग मिलते हैं जिनमें कुछ भी अतिशय जुड़ता नहीं, या जुड़ता है तो यही कि वस्तु उत्तम है (ऐसे बहुत से शब्दों का पृथक् अर्थ नहीं किया जा रहा है) । जैसे-सुआसन, सुआयसु । मा० २.२८५ सुआश्रम । मा० १.६५.८; सुअंजलि । मा० १.१६१.७, सुकोमल । मा० १ १४ घ; सुजतन । मा० ७.१२०.१०; सुदानी। मा० २.२०४.८%; सुदास । मा० १.१६; सुपल्लवत । मा० १.२१२; सुपुनीत । मा० ७.१२७; सुपुनीता। मा० ७.१२५.८%; सुपुनीत । मा० ७.१२७; सुपुनीता। मा० ७.१२५.८; सुप्रेम। मा० १.२२; सुबास । मा० २.६०; सुबेलि । मा० २.२४४.६; सुबंधु । मा० २.७२; सुमनोहर । मा० ३.२७.३; सुमंगल । मा० ७.३; सुमंगलचार । मा० २.२३; सुसेवक । मा० २.१४३ आदि इनके 'सु' को निकालकर भी लगभग वही अर्थ आका है; केवल उत्तम और अतिशय जोड़ना ही महत्त्व का है। (२) सो वह । 'कहहु स प्रेम प्रगट को करई ।' मा० २२४१.३ 'दीपक काजर सिर धर्यो, धर्यो सु धर्यो धर्योइ।' दो० १०६ सुंदर : वि० (सं0-सु+उन्दीक्लेदने+अर)। अतिशय उत्तम द्रवीभाव लाने वाला, मन को पिघलाने वाला=मनोहर । मा० १.३४ ।। सुंदरतर : अतिशय सुन्दर । गी० ७.७.३ सुंदरता : सुन्दरता से । 'निज सुंदरतां रति को मदु नाए।' कवि० ७.४५ सुंदरता : सं०स्त्री० (सं.)। मनोज्ञता, हृद्यता-हृदय को द्रव बनाने वाली छटा । मा० ७.३३.३ सुंदरताई : सुदरता । मा० १.१३२.१ सुंदरायतना : वि.पु. (सं० सुन्दरायतन)। उत्तम विस्तार वाला, उत्तम भवनों वाला (दीर्घता के अनुपात में चौड़ाई की मनोहरता से युक्त प्रासादों वाला) । मा० ५.३ छं० १ सुंदरि : (१) सुदरी । “गारी मधुर स्वर देहि सुदरि ।' मा० १.६६ छं. (२) सुदरी+संबोधन (सं०) । हे सुन्दरी ! मा० २.६१.७ सुदरी : सुदरी+ब० । सुन्दरियाँ । मा० १.३२२ छं० सुंदरी : (१) सं०स्त्री० (सं.)। प्रमदा, मनोज्ञ युवती । 'निसि सुदरी केर सिंगारा।' मा० ६.१२.३ (२) वधू, स्त्री । 'सुर-सुदरी।' मा० १.६१.४ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy