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तुलसी शब्दकोश
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राखे : (१) भूकृ००ब० । रखे । 'राखे सरन जान सब कोऊ।' मा० १.२५.१
(२) रखे-ही-रखे । 'पिंजरा राखे भा भिनुसार ।' मा० २.२१५ (३) राखें । रखने से । 'लोक राखे निपट निकाई है।' गी० ५.२६.३ (४) रख कर । 'राखे
रीति आपनी जो जोइ सोई कीज।' कवि० ७.१२२ । राखेउ': आ०-भूक०पु+उए । मैंने रखे, बचाये। ‘राखेउँ प्रान जानकिहि
लाई।' मा० २.५६.२ राखेउ : भूकृ.पु०कए० । (१) रक्षित किया। 'मख राखेउ ।' मा० १.२१६
(२) स्थित किया, रखा । 'जोगु भोग मह राखेउ गोई ।' मा० १.१७.२ राखेसि : आ०-भूकृपु+प्रए । उसने रखा, स्थापित किया। 'ल राखेसि
गिरि खोह महुँ ।' मा० १.१७१ (२) रहने दिया। 'राखेसि कोउ न सुतंत्र।' मा० १.१८२ (३) उसने धरा, प्रस्तुत किया। 'दोना भरि भरि राखेसि
पानी। मा० २.८६.८ राखेहु : (क) आ०-भ०+ आज्ञा, प्रार्थना+मब०। (१) तुम स्थिर कर लेना।
'अब उर राखेहु जो हम कहेऊ ।' मा० १.७७.६ (२) तुम रक्षा करना । 'राखेहु नयन पलक की नाई।' मा० १.३५५.८ (ख) आ०-भूकृ.पु+
मब० । तुमने (छिपा) रखा। 'सो भुजबल राखेहु उर घाली ।' मा० ६.२६.८ राखे : राखाइ । रख ले, रख सकता है। (१) रोक ले । 'मिटा सोचु जनि राखै
राऊ।' मा० २.५१.८ (२) बचा ले। 'के राखै के सँग चल ।' दो० ५४४ (३) बचा सकता है। जाहि घालो चाहिए, कहौ धौं, राखै ताहि को।'
कवि०७.१०० राखौं : राखउँ । रखू', रहने दूं, बचाऊँ, धारण करूं। 'राखौं देह नाथ केहि
खाँगें।' मा० ३.३१.७ राख्यो : राखेउ । 'जद्यपि है दारुन बड़वानल, राख्यो है जलधि गभीर धीरतर ।'
राग : सं०० (सं.)। (१) रंग, वर्ण । 'सिय अंग लिखें धातु राग ।' गी.
२.४४.४ (२) आसक्ति, विषयवासना । 'लोभ न छोभ न राग न द्रोहा ।' मा० २.१३०.१ (३) प्रेम+रंग। 'उन्हहिं राग रबि नीरद जल ज्यों।' कृ० ३६ (४) संगीत की स्वरयोजना विशेष । 'सरस राग बाहिं सहनाई।' मा० १.३४४.२ (५) संगीत में छह रागों, छत्तीस रागिनियों में अन्यतम । 'गावत गोपाल लाल नीके राग नट हैं।' कृ० २० (६) गीत, गेय पद । 'मारू
राग सुभट सुखादाई।' मा० ६.७६.६ रागा : राग, आसक्ति । तेहिं पुर बसत भरत बिन रागा।' मा० २.३२४.७ रागिन : रागी+संब० । रागियों, विषयी जनों। 'रागिन 4 सीठ।' कवि.
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