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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 905 रतिआतो : क्रियाति०पु०ए० । यदि प्रीति (रति) करता। 'राम नाम अनुराग ही जिय जो रतिआतो । स्वारथ परमारथ पथी तोहिं सब पतिआतो।' विन. १५१.५ रतिन : रती+संब० । रत्तियों, गुञ्जाओं। 'रतिन के लालचिन प्रापति मनक की।' कवि० ७.२० रतिनाथ : कामदेव । मा० १.८४ छं. रतिपति : कामदेव । मा० २.६०.८ रती : (१) रति । सुख चैन । (२) सं०स्त्री० (सं० रक्ति>प्रा० रत्ती) । गुञ्जा, गुजा की तोल, घुघची भर । 'काहू की रती न राखी, रावन की बंदि लागे अमर मरन ।' विन० २४८.३ (रावण ने देवों की सब सम्पत्ति छीन ली, रत्ती भर भी न छोड़ी और उनकी सारी चैन भी छीन ली।) रत्न : सं०० (सं०)। हीरा आदि जवाहरात । मा० ७.२३.६ रत्यो : रति (काम पत्नी) भी । 'रत्यो रची बिधि, जो छोलत छबि छूटी।' गी० २.२१.१ रथ : सं०० (सं०) । स्यन्दन=वाहनविशेष । मा० १.१६५ रथकेतु : रथ की पताका । हनु० ५ रथनि न्ह : रथ+संब० । रथों । 'रथनि सों रथ बिदरनि बलवान की।' कवि० ६.४० 'ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते।' मा० १.२६६.५ रथहि : (छुछे) रथ को । 'चले अवध लेइ रथहि निषादा ।' मा० २.१४४.२ रथांग : सं०० (सं०) । चक्रवाक, चकवा पक्षी । 'पिक रथांग सुक सारिका।' मा० २.८३ रथारूढ : रथ पर बैठा हुआ। मा० ६.८६.५ रथी : सं०+वि.पु.० (सं० रथिन्) । (१) रथस्वामी। (२) रथारूढ । मा० १.२६६.८; ६.८०.१ रथु : रथ+कए । 'खोज मारि रथु हाँकहु ताता।' मा० २.८५.८ रद : सं०५० (सं.)। दांत । मा० १.१४७.२ ।। रदपट : सं०० (सं०) । दन्तच्छद--ओष्ठ । मा० १.२५२.८ रन : सं०पु० (सं० रण)। युद्ध । मा० १.२५.५ रनधीर, रा : युद्धवीर, युद्ध में धैर्यपूर्वक स्थिर रहने वाला। मा० ६.४०, १.१५३.४ रनभूमि : युद्ध क्षेत्र । मा० ६.१००.८ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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