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तुलसी शब्द-कोश
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माथे : (१) माथा का रूपान्तर । 'माथे पर गुर मुनि मिथिलेसू ।' मा० २.३१५.२
(२) माथें । 'राम दूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं।' हनु० ३२ माथो : माथा+कए० (सं० मस्तकम् >प्रा० मत्थअं>अ० मत्थउ) । 'नाइ माथो
पगनि ।' कवि० ५.२६ माधव : सं०० (सं०) । (१) विष्णु । कृष्ण या राम । 'सब बिपरीत भए माधव
बिनु ।' कृ० ३१ (२) काशी में बिंदुमाधव । विन० २२.७ (३) प्रयाग में वेणीमाधव । 'पूजहिं माधव पद जल जाता।' मा० १.४४.५ (४) वैशाख मास ।
जा०म०छं०४ माधुरी : सं०स्त्री० (सं.)। (१) मिठास (स्वादविशेष) । 'जल माधुरी सुबास ।'
मा० १.४२ (२) सभी दशाओं में मनोहर लगने वाला सौन्दर्य । 'माधुरी
बिलास हास ।' गी० २.४४.४ मान : सं०० (सं.)। (१) अहंकार । 'भजु तुलसी तजि मान मद ।' मा०
१.१२४ ख (२) सम्मान, आदर । 'दान मान बिनती बर बानी।' मा० १.३२१.५ (३) आत्मसम्मान, स्वाभिमान । 'मान राखिबो मागिबो।' दो २८५ (४) परिमाण, प्रमाण, सीमा। दे० अमान । (५) बल, बूता। 'काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं।' हनु० ३६ (६) माइन । माने, मानता हो । 'तदपि बिरोध मान जहँ कोई ।' मा० १.६२.६ (७) मानि । 'लेत मान मन की।' विन० ७१.५ (८) आ०-आज्ञा-मए । तू मान ले। 'मान हिय हारि ।' विन० १६३.२ (६) लोक सम्मान की प्राप्ति । दे० मान-मद । 'मान, मानइ : (१) आ०प्रए० (सं० मानयति>प्रा० माणइ) । आदर देता है, मन्नत करता है, प्रार्थना करता है। (२) (सं० मन्यते>प्रा० मण्णइ) ।
समझता है । 'जेहि बिधि कृपासिंधु सुख मानइ।' मा० ७.२४.७ मानउँ : आ० उए । मानता हूं, आदर देता हूं। 'फिरि फिरि सगुन ब्रह्म रति
मानउँ ।' मा० ३.३.१३ मानत : (१) वकृ००। मानता-ते । आदर देता । 'बिनय न मानत जलधि जड़।'
मा० ५.५७ (२) अनुभव करता-ते; समझता-ते । 'काहे को मानत हानि हिये
हो।' गी० २.७५.१ मानति : (१) वक०स्त्री० ! मानती, समझती, अनुभव करती । 'मानति भूमि भूरि
निज भागा। मा० २.११३.८ (२) रुचती, भावित करती, प्रसन्न करती ।
'कंबु कंठ सोभा मन मानति ।' गी० ७.१७.१० मानतो : मानत+कए । अनुभव करता, समझता । 'मानतो न नेकु संक।' कवि०
मानद : वि०० (सं०)। दूसरों को सम्मान देने वाला । 'सावधान मानद
मदहीना ।' मा० ३.४५.६
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