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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 571 (४) प्रणाम करता-करते । 'चरन परत नप रामु निहारे ।' मा० २.४४.३ (५) रखा जाता-रखे जाते । 'तब पथ परत उताइल पाऊ।' मा० २.२३४.६ (६) लेटता-ते । 'परत पराई पौरि ।' दो० ६६ (७) शक्य होता । 'कहो क्यों परत मो पाहीं ।' विन० ४.२ परति : वकृ०स्त्री० । (१) गिरती, प्रणत होती। परति गहि चरना ।' मा० १.१०२.७ (२) शक्य होती । 'न परति बखानी ।' मा० १.२१.७ (३) बिखेरी जाती । 'नभ पुर परति निछावरि ।' गी० १.४५.६ (४) आती, प्राप्त होती। 'नींद न परति राति ।' गी० १.६६.२ परतिय : परकीया स्त्री, पराई पत्नी। मा० १.२३१.७ परतिहुं : गिरती (वेला) में भी। परतिहुं बार कटकु संघारा।' मा० ५.२०.१ परतीति, ती : प्रतीति । 'असि परतीति तजहु जनि भोरें।' मा० १.१३८.६ ४.७.१३ परत्र : अव्यय (सं.) । परलोक में । 'सो परत्र दुख पावइ ।' मा० ७.४७ परत्रिय : परतिय । मा० ७.११२.४ परदखिना : सं०स्त्री० (सं० प्रदक्षिणा) । दाहिनी ओर से परिक्रमा । 'परदखिना __ करि करहिं प्रनामा ।' मा० २.२०२.३ परदा : सं०० (फा० पर्दः) । (१) चिलमन, चिक । चित्र बिचित्र चहं दिसि परदा ।' गी० ७.१६.३ (२) परिधान+आवरण । 'सेवक को परदा फट तू समरथ सी ले।' विन० ३२.४ (३) घेरा। भांग की टाटिन्ह के परदा हैं।' कवि० ७.१५५ (४) छिपाव-दुराव । 'नारद सों परदा न ।' कवि० १.१६ परदार, रा : परायी स्त्री, परकीया। मा० १.१८४.१ परवेस : पराया देश, विदेश । गी० २.१३.२ परदोषा : दूसरे के दोष । मा० ३.३६.४ परद्रोह : अन्य के प्रति द्वेष, ईर्ष्या आदि । मा० ६.६२.४ परद्रोही : परद्रोह-शील । मा० १.१८४.५ परधन : पराया धन । मा० १.१८४.१ परधनु : परधन+कए । 'जे ताकहिं परधनु परदारा ।' मा० २.१६८.३ परधान : प्रधान । दो० ४६८ (यहाँ प्रकृति-पर्याय भी है)। परिधान : परधान+कए । एकमात्र प्रधान, सर्वोपरि । 'जहँ नहिं राम पेम पराधान ।' मा० २.२६१.२ परषामा : (१) (सं० पर+धामन् ) परम धाम, चरन अधिष्ठान, सर्वाधार, सर्वोच्च प्राप्य, परमेश्वर-सालोक्य का स्वरूप । (२) परम प्रकाश । 'अज सच्चिदानंद परधामा।' मा० १.५०.७ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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