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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 799 (४) (समासान्त में) वि० । उत्पन्न, जनित । 'ईस-अंस-भव परम कृपाला।' मा० १.२८.८ भवंत : सर्वनाम पु० (सं० भवत् >प्रा० भवंत)। आप, श्रीमान् । मा० ७.१४ छं० भवकूपा : संसाररूपी कुआ। मा० १.१६२ छं० भवचापा : भव =शिव का चाप धनुष । मा० १.२५४.६ भवचापू : भवचाप+कए । एक शिव धनुष । 'भंजेउ राम आपु भवचापू ।' मा० १.२४.६ भवजाल : संसाररूपी जाल । विन० ७४.४ भवत : (सं० भवत:) आप को। 'भूतभव भवत पिसाच भूत प्रेत प्रिय ।' कवि० ७.१६८ भवतव्यता : सं०स्त्री० (सं० भवितव्यता) । भावी, होनहार, दैवी विधान । मा० १.१५६ ख भवतरु : संसाररूपी वृक्ष । 'भवतरु टर न टार्यो ।' विन० २०२.२ भवतारक : संसार से पार ले जाने वाला । विन० १४५.६ भवतु : आ०-कामना-प्रए० (सं.)। हो, होवे । 'भवतु में राम विश्राममेकं ।' विन० ५७.८ भवत्रास : भवमय ! विन० ६३.६ भवदंग : (सं०-भवत+अङ्ग) आपका अङ्ग-ईश्वर देह । 'भुवन भवदंग, कामारिवंदित ।' विन० ५४.३ (रामानुज, रामनन्द दर्शनों के अनुसार चित् = आत्मतत्त्व तथा अचित् = अनात्म जड़ तत्त्व दोनों परमेश्वर का अंश एवं शरीर भवदंघ्रि : (भवत् +अंघ्रि) आपके चरण । मा० ७.१४ छं० ५ भवदंशसंभव : आपके अंश से उत्पन्न (दे० भवदंग)। बिस्व भवदंशसंभव पुरारी।' _ विन० १०.६ भव-धनु : शिवजी का धनुष । विन० १००.५ भवन : सं०० (सं०) । घर, आगार, आवास । मा० १.१०.२ भवननि : भवन+संब० । भवनों। 'भवननि पर सोभा अति पावत ।' मा० ७२८.५ भवनिधि : भवसागर, संसाररूपी समुद्र । मा० ६.६६.३ भवनिसा : संसाररूपी रात्रि । विन० १०५.१ भवनी : घरनी। पत्नी । 'पुलकि तनु कहति मुदित मुनिभवनी।' गी० १.५८.२ भवनु : भवन+कए । वह एक घर । 'भवन ढहावा ।' मा० ६.४४.३ भवपास : (सं० भव-पाश) संसार जाल, जन्म-मरण-बन्धन । विन० ४६.६ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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