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तुलसी शब्द-कोश
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व्याष : (१) सं०० (सं० व्याध) । बधिक, बहेलिया । मा० १.२६.६ (२) एक
वह वधिक जिसने मृग के धोखे से कृष्ण के पैर में तीर मारा था ! 'ब्याध चित
दै चरन मार्यो मूढमति मृग जानि ।' विन० २१४.५ व्याधि, धी : व्याधि । रोग । मा० २.३४ ब्याधिन्ह : ब्याधि+संब० । व्याधियों । मा० ७.१२१.२६ ब्याधू : ब्याध+कए. । मा० १.५.८ । ब्याप, ब्यापइ : आ०प्रए० (सं० व्याप्नोति, व्यापयति)। (१) ओत-प्रोत करताती है । 'हरि सेवहि न ब्याप अबिद्या । हरि प्रेरित ब्यापइ तेहि बिद्या।' मा० ७.७६.२ (२) अधीन करता-ती है । 'नट सेवकहि न ब्यापइ माया।' मा०
७.१०४.८ पापक : व्यापक । (१) अन्य की अपेक्षा अधिक क्षेत्र विस्तार वाला । 'ब्यापक
बिस्वरूप भगवाना।' मा० १.१३.४ (२) प्रचुर, अपेक्षाकृत अधिक । 'अघ
ब्यापकहि दुरावौं ।' विन० १७१.३ ब्यापक : ब्यापक+कए० । एकमात्र (निरपेक्ष रूप से) सर्वव्यापी । 'ब्यापकु एकु
ब्रह्म अबिनासी।' मा० १.२३.६ ब्यापत : वक०पु० । व्याप्त (ओत-प्रोत) करता, घेरता, अपनी व्याप्ति में लेता।
'तुम्हहि न ब्यापत काल ।' मा० ७.६४ क ब्यापहि : आ०प्रब० । व्याप्त करते हैं (१) ओत-प्रोत (प्रभावित करते हैं । 'काल
धर्म ब्यापहिं नहिं ताही ।' मा० ७.१०४.७ (२) घेरते हैं। 'सकल बिध्न
ब्यापहिं नहिं ताही ।' मा० १.३६.५ व्यापा : भूक ० । फैल गया, छा गया, ओत-प्रोत हुआ। 'महि पाताल नाक जसु
ब्यापा।' मा० १.२६५.५ व्यापि : पूकृ० । फैल (कर), छा (कर) । 'नगर ब्यापि गई बात सुतीछी। मा०
२.४६.६ ज्यापित : भूकृ०वि० (सं० व्याप्त, ब्यापित) । ओत-प्रोत किया हुआ-की हुई।
_ 'मोह कलित ब्यापित मति मोरी।' मा० ७.८२.७ व्यापिहहिं : आ०म०प्रब० । ब्याप्त करेंगे, प्रभाव में लेंगे । 'माया संभव भ्रम सब
अब न ब्यापिहहिं तोहि ।' मा० ७.८५ क च्यापिहि : आ०म०प्रब० । व्याप्त करेगा, ओत-प्रोत कर लेगा । 'बिनु बपु ब्यापिहि
सबहि ।' मा० १.८७ व्यापी : भूकृस्त्री० । व्याप्त हुई (सर्वाङ्ग-प्रभावी हुई) । 'काम कला कछु मुनिहि
न ब्यापी ।' मा० १.१२६.७ च्यापेउ : भूकृ००कए । व्याप्त हुआ, फैल गया, छा गया। 'ब्यापेउ'"पुर"
संबादु।' मा० १.६८
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