SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 669 बखानिहैं : आ०प्रब०भ० । बखानेंगे, वर्णन करेंगे। त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं ।' मा० ४.३० छं० बखानी : बखानी+ब। वणित की। 'अपर कथा सब भूप बखानीं।' मा० १.२६५.२ बखानी : (१) बखानि । 'स्याम गौर किमि कहीं बखानी।' मा० १.२२६.२ (२) भूक स्त्री० । वणित की। 'अति लोभी सन बिरति बखानी ।' मा० ५.५८.३ बखाने : बखान करने से । 'अघ कि रहहिं हरि चरित बखाने ।' मा० ७.११२.६ बखाने : भूक ००ब० । व्याख्यापूर्वक स्पष्ट किये। 'तेहि तें कछु गुन दोष बखाने ।' मा० १.६.२ बखाने : बखानइ । बखान सकता है । 'मक कि स्वाद बखान ।' आ०म० ८७ बखानो : बखानहु । 'ती सकोच परिहरि पा सागौं परमारह बखानो।' कृ० ३५ बखान्यो : भक००कए । वर्णन किया । 'बेद पुरान बखान्यो।' विन० ८८.३ बखार : सं०० (सं० उपस्कार >प्रा० वक्खार-संग्रह)। कोठा, जिसमें अन्न भरा जाता है । 'बिबिध बिधान धान बरत बखार हीं।' कवि० ५.२३ बग : बक । बगुला। मा० १.४१ बगध्यानी : वि०० (सं० वकध्यानिन्) । बगुले के समान छल-ध्यान करने वाला; (जिस प्रकार मछली पकड़ने हेतु बक-पक्षी ध्यान मुद्रा ग्रहण करता है, उसी प्रकार) पूजा, भक्ति, तप आदि का प्रदर्शन कर छलने वाला। तब बोला तापस बगध्यानी।' मा० १.१६२.६ बगपांति : बगुलों की श्रेणी । गी० ७.१८.३ बगमेल : वि०+ क्रि०वि० (सं० वर्ग मेल>प्रा० वग्ग मेल) । झुण्ड के झुण्ड मेला बनाये हुए। कछुक चले बगमेल ।' मा० १.३०५ बगरि : पूक० (सं० विकीर्य>प्रा० विगरिअ> अ० विगार)। फल कर, बिखर कर । 'जाको जस लोक बेद रह्यो है बगरि सो।' विन० २६४.४ बगरे : भूक००० (सं० विकीर्ण>प्रा० विगरिय)। बिखरे, फैले। 'परनिंदक जे जग मो बगरे।' मा० ७.१०२.५ बधनहा : संपु० (सं० व्याघ्रनख>प्रा० वग्धनह) । बाघ का नाखून या उस आकार का आभूषण जो बच्चों को पहनाया जाता है। ‘कठुला कंठ बघनहा नीके ।' गी० १.३१.३ बघाजुड़ानी : सं०स्त्री०। (१) व्याघ्र या चीते को शीतल उपचारों से वश में करने की क्रिया । (२) बघा=एरण्ड वक्ष के नीचे शीतल होने (विश्राम) की क्रिया । 'जरी सुंघाइ कुबरी कौतुक करि जोगी बघाजुडानी।' क० ४७ (अर्थात् कुबरी योगिनी ने ऐसी जड़ी सुघाई कि कृष्ण जैसे पुरुष व्याघ्र को वश में कर For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy