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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 663 फोरा : भूक.पु(सं० स्फोटित>प्रा० फोडिअ)। फोड़ डाला। 'राखा जिअत ___ आखि गहि फोरा ।' मा० ६.३६.१२ फोरि, फोरी : पूकृ० । फोड़कर । 'पर्बत फोरि करहिं गहि बाटा ।' मा० ६.४१.५ ___ 'काचे घट जिमि डारों फोरी।' मा० १.२५३.५ फोरे : भूकृ.पु । फोड़ने पर। 'गूलरि को सो फल फोरे।' कृ० ४४ फोर : भकृ० अव्यय । फोड़ने । 'फोर जोगु कपार अभागा।' मा० २.१६.२ फोरों : आ०उए० (सं० स्फोटयामि, स्फोटयेयम्>प्रा. फोडमि, फोडमु>अ० फोडउँ) । फोड़ता हूं, फोड़ सकता हूं। 'चपेट की चोट चटाक दै फोरौं ।' कवि० ६.१४ फौज : सं०स्त्री० (अरबी-फौज लस्कर, जंगली सिपाही, गिरोह) । सेना, बनचर-सेना, समूह । 'कुंभ-करन कपि फौज विदारी।' मा० ६.६७.७ फौज : फौज+ब० । सेनाएँ । हनु० ३५ बंटाई : भूक०स्त्री० (सं० वण्टापिता>प्रा० बंटइआ)। विभक्त की (अपने पर ___ली) । 'जेहिं बन बिपति बटाई।' गी० ६.६.२ बंटावन : (१) भकृ० अव्यय । बंटाने । 'जिनके बिरह बँटावन खग मग जीव दुखारी।' गी० २.८५.२ (२) वि०पू० । बंटाने वाला। 'बिपति बँटावन बंध बाहु ।' गी० ६.७.१ बैटया : वि० । बंटाने वाला । बिपति बॅटेया।' कवि० ७.५१ बंधत : वकृ० । बंध जाता, जकड़ जाता । 'बँधत बिनहिं पास ।' विन० १६७.२ बंधब : भक०० (सं० बद्धव्य>प्रा० बंधिअव्व)। बांधना, बन्धन । 'कृपा कोपु बधु बँधब गोसाई।' मा० १.२७६.५ ।। बंधाइ : पूकृ० (सं० बन्धयित्त्वा>प्रा० बंधाविअ>अ० बंधावि) । (१) बँधवाकर (बांधने देकर)। 'हठि तेल बसन बालधि बँधाइ।' गी० ५.१६.४ (२) बांध (सेतु) से बद्ध करवा कर । 'बारिधि बंधाइ उतरे ।' गी० ५.२२.११ बंधाइअ : आ०कवा०प्रए । बंधाया जाय (सेतुबद्ध कराया जाय)। 'एहि बिधि नाथ पयोधि बंधाइअ ।' मा० ५.६०.४ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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