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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थात्-नेत्रं सर्वतोऽपि मृदु, लघु च, स्पर्शेन्द्रियं तु सर्वतः कर्कशम् , गुरु च." इन्द्रियाणां विषयग्रहणपद्धतिः " पुट्ठाई भंते ! सद्दाई सुणेति ? अपुट्ठाई सद्दाई सुणेति ? गोयमा ! पुट्ठाई सद्दाई सुणेति, नो अपुट्ठाई सद्दाई सुणेति, पुट्ठाई भंते ! रूवाई पासति ? अपुट्ठाई पासति ? गोयमा ! नो पुट्ठाई रूवाई पासति, अपुट्ठाई रूवाइं पासति-( एवं ) गंधाई पुढाई अग्याइ, नो अपुट्ठाई. रसाइं पुट्ठाई अस्साएइ, नो अपुहाई, फासाई पुट्ठाइं पडिसंवेदेइ नो अपुट्ठाइं—पविट्ठाई सदाई सुणेति नो अपविट्ठाई सद्दाइं सुणेति–एवं जहा पुट्ठाणि तहा पविट्ठाणि वि" ___ इन्द्रियाणां कियतो दूरात् विषयग्रहणम् ?-- "सोतेंदियस्स णं भंते ! केवतिए विसए पामते ? गोयमा! जहम्मेणं अंगुलस्स अंसखेजभागेण, उक्कोसेणं बारसहिं जोअणेहितो अविच्छिम्मे पोग्गले पुढे पविट्ठाई सद्दाई सुणेति, चक्खियस्स णं भंते ! केवतिए विसए परमत्ते? गोयमा ! जहलेणं अंगुलस्स असंखेजभागण, उक्कोसेण सातिरेगाओ जोयणसयसहस्साओ अच्छि पोग्गले अपुढे. अपविट्ठाई रूवाई पासइ, घाणिदियस्स पुच्छा ? गोयमा! जहोणं अंगुलस्स असंखेजभागेण, उक्कोसेणं नवहिं जोयणेहिंतो अच्छिले पोग्गले पुढे पविट्ठाई गंधाई अग्घाइ, एवं-जिभिदियस्स वि, फासिंदियस्स वि." अत्र तावद् इन्द्रियाणां विषयग्रहणपद्धतो मतान्तराणि सर्वाणि इन्द्रियाणि प्राप्यकारीणि अर्थात्-इन्द्रिय-विषययोः संस्पर्शद्वारेणैव विषयग्राहीणि इति मतम्-~-कणभक्षअक्षपाद-मीमांसक-सांख्यप्रावचनिकप्रवराणाम्. For Private And Personal Use Only
SR No.020815
Book TitleTattvavatar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Kacchi, Bechardas Jivraj
PublisherMeghji Thobhan Sheth
Publication Year
Total Pages92
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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