SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीपिकानिर्युक्तिश्च अ. त्रसजीवनिरूपणम् ७७ स्पर्शनेन्द्रियं खलु भदन्त–! किंसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! नाना संस्थानसंस्थानं प्रज्ञप्तम् । जिह्वेन्द्रियंखलुभदन्त - ! किंसंस्थान संस्थितं प्रज्ञप्तम् - ? गौतम ! क्षुरप्रसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् । घ्राणेन्द्रियं खलु भदन्त ! किं संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् : गौतम ! अतिमुक्तकचन्द्रक संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्। चक्षुरिन्द्रियं खलु भदन्त ! किं संस्थान संस्थितं प्रज्ञप्तम् ? मसूरकचन्द्रसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् । श्रोत्रेन्द्रियं खलु भदन्त ! किं संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! कदम्बकपुष्पसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तमितिप्रज्ञापनायामिन्द्रियाख्ये पञ्चदशेपदे १९१ सूत्रे प्रतिपादितम् ॥२०॥ मूलसूत्रम् - - ''इंदियविसए पंचविहें फासे रसे गंधे वण्णे सदेय" ॥२१॥ छाया - इन्द्रियविषयः पञ्चविधः स्पर्शो रसो गन्धो वर्णः शब्दश्च ॥ २१ ॥ तत्त्वार्थदीपिका : -- पूर्वं खलु श्रोत्रादीनि पञ्चेन्द्रियाणि द्रव्येन्द्रियभावेन्द्रियात्मकानि प्रतिपादितानि सम्प्रति-तेषां पञ्चेन्द्रियाणां पञ्चविषयान् प्रतिपादयितुमाह - " इंदियविसए पंचवि - गंधे व सद्देय - " इति इन्द्रियविषयः इन्द्रियाणां स्पर्शन - रसन-प्राण-चक्षुःश्रोत्राणां विषयः विषिणोति - निबन्धाति स्वेन रूपेण - स्वाकारेण निरूपणीयं करोति अन्तःकरणवृत्तिविशेषं - ज्ञानादिकमिति विषय: प्रश्न- भगवन् ! घ्राणेन्द्रिय किस आकार की कही है ? उत्तर - गौतम ! अतिमुक्तक के चन्दक के आकार की कही है। प्रश्न- भगवन् ! चक्षुरिन्द्रिय किस आकार की कही है ? उत्तर - गौतम ! मसूर या चन्द के आकार की कही है । प्रश्न- भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की कही है ? उत्तर - गौतम ! कदम्ब के आकार की कही है । इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के पन्द्रहवें पद में १९१ वें सूत्र में कहा गया है ॥२०॥ मूलसूत्रार्थ - ॥ इंदिय विसए पंच विहेत्यादि ॥ २१ ॥ इन्द्रियों का विषय पाँच प्रकार का है - स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द ॥२१॥ तत्त्वार्थदीपिका - पहले कहा जा चुका है कि श्रोत्र आदि पाँच इन्द्रियाँ द्रव्य और भाव के भेद से दो-दो प्रकार की हैं। अब उनके विषय बतलाने के लिए कहते हैं - इन्द्रियों के विषय पाँच हैं - स्पर्श, रस, गंध, और शब्द | जो इन्द्रियों के द्वारा जाना जाता है, वह इन्द्रियों का विषय कहलाता है । उसके पाँच भेद हैं- (१) स्पर्श - जिसे छूकर जाना जाय । (२) रस - जो चखने से जाना जाय । (३) गंध - जो सूंघने से मालूम हो । ( ४ ) वर्ण - देखने से जिसका शब्द- जो कान से प्रतीत हो । ज्ञान हो और ( ५ )
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy