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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू. ३० हैमवतादिक्षेत्रेषु मनुष्याणामायुप्ये न्यूनाधिकत्वम् ६६७, "हिमवयाइ उत्तरकुरांतेमु दाहिणोत्तरेसु एग-दु-ति पलियोक्मद्विइया, विदेहेस यसंखेज्जकाला-" इति । हैमवताद्युत्तरकुर्वन्तेषु हैमवत-हरिवर्ष-रम्यकवर्ष-हैरण्यवत-देवकुरूत्तरकुरुषु दक्षिणोत्तरेषु क्षेत्रेषु मनुष्या यथाक्रमम्-एक-द्वि-त्रिपल्योपमस्थितिका भवन्ति । तत्र-हैमवतक्षेत्रेषु हैरण्यवतक्षेत्रेषु च दक्षिणोत्तरेषु मनुष्याणामेकपल्योफ्ममायुष्यं भवत्ति, हरिवर्षरम्यकवर्षेषु च मनुष्याणां द्विपल्योपममायुष्यं भवति, देवकुरुषु-उत्तरकुरुषु च-मनुष्याणांत्रिपल्योपममायुष्यं भवति । तत्र---पञ्चसु हैमवतक्षेत्रेषु-पञ्चसु हैरण्यवतक्षेत्रेषु च सुषमदुष्पमायासदा-ऽवस्थितत्वात् तत्र मनुष्या एक पल्योपमायुषो द्विधनुः सहस्रोच्छ्रायाश्चतुर्भक्ताहारा एकान्तरभुक्तिमन्तः, नीलोत्पलवर्णाश्च भवन्ति ।। एवं-पञ्चसु हरिवर्षेषु-पञ्चसु रम्यकवर्षेषु च सुषमायाः सदाऽवस्थानात् तत्र मनुष्या द्विपल्यो पमायुषश्चतुर्धनुः सहस्रोत्सेधाः षष्ठभक्ताहारा द्विदिनान्तरितभुक्तिभाजः शङ्खवर्णाश्च भवन्ति । एवम्पञ्चसु देवकुरुषु, पञ्चसूत्तरकुरुषु च सुषमसुषमायाः अहरहः सान्निध्ययोगात् तत्र-मनुष्या निपल्योपमायुषः षड्धनुः सहस्रोच्छ्रिता अष्टमभक्ताहारास्त्रिदिनान्तरभुक्तिमन्तः कनकवर्णाभाश्च भवन्ति, किन्तु-विदेहेषु च पञ्चसु पूर्वविदेहेषु-पच्चसु-अपरविदेहेषु च महाविदेह 'हिमवयाइ' इत्यादि हैमवत से लेकर उत्तरकुरु पर्यन्त के अर्थात् हैमवत-हरिवर्ष-रम्यकवर्ष हैरण्यवत देवकुरु एवं उत्तरकुरु के दक्षिण उत्तर क्षेत्रों में मनुष्य क्रम से एक, दो, तीन, पल्योपम मी स्थिति वाले होते हैं। उनमें हैमवत क्षेत्र में हैरण्यवत क्षेत्र में दक्षिणोत्तर क्षेत्रों में मनुष्यों का आयु एक पल्योपम का होता है । हरिवर्ष और रम्यकवर्ष में दो पल्योपम की आयु होती है और देवकुरु तथा उत्तरकुरु में तीन पल्योयम की आयु होती है । पाँच हैमवत और पाँच हैरण्यवत क्षेत्रो में सदैव सुषमदुष्पम के सदृश काल रहने से वहां के मनुष्य एक पल्योपम की आयु वाले दो हजार धनुष की अवगाहना वाले, चतुर्थ भक्ताहारी अर्थात् एकान्तर से भोजन करने वाले तथा नील कमल के समान वर्ण वाले होते हैं । इसी प्रकार पाँच हरिवर्ष तथा पाँच रम्यक वर्ष क्षेत्रों में सदा सुषमा सदृश काल रहने से वहाँ के मनुष्यों की आयु दो पल्योपम की होती है, शरीर की अवगाहना चार हजार धनुष की होती है और वे षष्ठ भक्ताहारी होते हैं अर्थात् दो दिन के अन्तर से भोजन करते हैं । उनका वर्ण शंख जैसा होता है । ___ पाँच देव कुरु और पाँच उत्तर कुरु क्षेत्रों में सुषमा सुषमा सदृश सदैव रहने से वहाँ के मनुष्यों की आयु तीन पल्योपम की होती है, अवगाहना छह हजार धनुष की होती है और वे अष्टम भक्त-भोजी आकर्ष होते हैं अर्थात् तीन दिन के अन्तर से भोजन करते हैं । उनके शरीर का वर्ण स्वर्ण जैसा होता है । किन्तु पाँच पूर्वविदेहों और पाँच पश्चिमविदेहों में मनुष्य
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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