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________________ चिकानिर्युक्तिश्च अ० ५ सू० २८ नीलादित्रयवर्षधराणां रम्यकादि त्रयवर्षाणां विष्कम्भः ६५७ तत्वार्थनिर्युक्तिः - पूर्व सूत्रे - क्षुद्र हिमवदादिमहाविदेहान्तानां पण्णां वर्षधराणां वर्षाणाञ्च यथाक्रमं विष्कम्भः प्ररूपितः, सम्प्रति- नीलरुक्मि- शिखरिणां त्रयाणां वर्षघराणां, रम्यकहैरण्यवतैरवतानाञ्च त्रयाणां वर्षाणां विष्कम्भं प्ररूपयितुमाह - " उत्तरा वासहरवासा दाहिणतुल्ला” इति । उत्तराः -- नीलादि - ऐरवतान्ताः षट्संख्यकाः वर्षधरवर्पाः, त्रयो वर्षधराः - त्रयो वर्षाश्च दक्षिणतुल्याः दक्षिणैः- निषध- हरिवर्ष-महाहिमवद् - हैमवत - क्षुद्र हिमवद् भरतवर्षे स्तुल्यविष्कम्भाः सन्ति । तत्र - ऐरवतक्षेत्रं भरतक्षेत्रस्य तुल्यबाहल्यं वर्तते । शिखरीपर्वतः - क्षुद्र हिमवत्पर्वतस्य तुल्यबाहल्यो वर्तते । हैरण्यवतक्षेत्रञ्च हैमवतक्षेत्रस्य तुल्यबाहल्यम् । रुक्मिपर्वतश्च - महाहिमबत्पर्व - तस्य तुल्यबाहल्या वर्तते, रम्यकक्षेत्रञ्च- हरिवर्षक्षेत्रस्य तुल्यबाहल्यं विद्यते । नीलपर्वतस्तु - निषधपर्वतस्य तुल्यबाहल्यो वर्तते । " तत्र - ऐरवत क्षेत्र विष्कम्भस्तावत् - षडूविंशत्यधिकपञ्चशतयोजनप्रमाणः षडेकोनविंशतिभागयोजनरूपञ्च ५२६६_ वर्तते । शिखरि पर्वतविष्कम्भस्तु - द्वापञ्चाशदधिकसहस्रयोजनप्रमाण १९ द्वादशैकोनविंशतिभागयोजनरूपश्च १०५२ वर्तते । हैरण्यवत क्षेत्र विष्कम्भश्च - पञ्चाधिकशतो 1 १९ ५ १९ तर सहस्रद्वययोजनप्रमाणः पञ्चैकोनविंशतिभागयोजनरूपश्च २१०५ विद्यते । रुक्मिपर्वतविष्कम्भस्तु — दशाधिकशतद्वयोत्तरचतुः सहस्रयोजनप्रमाणो दशैकोनविंशतिभागयोजनरूपश्च ४२१० १° वर्तते । रम्यकक्षेत्रविष्कम्भस्तु एकविंशत्यधिक चतुःशतोत्तराष्ट सहस्रयोजनप्रमाणः, १९ तत्वार्थनियुक्ति - पूर्वसूत्रों में क्षुद्र हिमवान् आदि नील पर्वतों के तथा भरत क्षेत्र आदि क्षेत्रों के विस्तार की अनुक्रम से प्ररूपणा की गई है। अब नील रुक्मी तथा शिखरी नामक तीन वर्षधर पर्वतों के तथा रम्यक, हैरण्यवत और ऐरवत नामक तीन क्षेत्रों के विस्तार की प्ररूपणा करते हैं - उत्तर दिशा में अवस्थित नील आदि तीन वर्षधर पर्वत ऐरवत आदि तीन क्षेत्र - छहों वर्षधर एवं वर्ष दक्षिण दिशा के पर्वतों और क्षेत्रों के समान विस्तार वाले हैं । उनमें से ऐरवत क्षेत्र भरत क्षेत्र के बराबर विस्तार वाला है शिखरी पर्वत क्षुद्रहिमवान् पर्वत के बराबर विस्तार वाला है, हैरण्यवत क्षेत्र हैमवत क्षेत्र के समान विस्तार वाला है, और रुक्मीपर्वत महाहिमवान् पर्वत के बराबर विस्तार वाला है, रम्यक क्षेत्र हरिवर्ष के बराबर विस्तार वाला है एवं नील पर्वत निषेध पर्वत के बराबर विस्तार वाला है । इस प्रकार ऐरवत क्षेत्र का विस्तार ५२६ योजन का हैं, शिखरी पर्वत का १९ १२ ५ विस्तार १०५२ योजन का है, हैण्यवत क्षेत्र का विस्तार २१०५ योजन का है, १९ १९ ८३
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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