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________________ पीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू० २५ पन्नहदादिनिर्गतगङ्गादिनदीनिरूपणम् १०७ इत्यादि-तत्र-तस्मिन् खलु पूर्वोक्तस्वरूपे जम्बूद्वीपे गङ्गादिकाः- गङ्गा-१ रोहिता२ हरिता-३ सीता-४ नरकान्ता-५ सुवर्णकूला-६ रक्ता-७ इत्येवं रूपा सप्तनद्यः महासरितः पूर्वाभिमुखवाहिन्यः -- पूर्वाभिमुखीभूय भरतादिक्षेत्रेषु प्रवहन्त्यः पूर्वेलवणसमुद्रं प्रविशन्ति सिन्ध्वादिकाः-सिन्धु रोहितांशा हरिकान्ता सीतोदा नारीकान्ता रूप्यकूला रक्तवत्यः इत्येवं भूताः सप्तनद्यस्तु-पश्चिमाभिमुखवाहिन्यः पश्चिमाभिमुखीभूय प्रवहन्यः पश्चिमलवण समुद्रं प्रविशन्ति तत्र नदीद्वयनदीद्वयमध्ये एकैकं क्षेत्रमवसेयम् तत्र पद्महदप्रभवा पूर्वतोरणद्वारनिर्गता गङ्गानदी वर्तते, तद्हूदप्रभवा पश्चिमतोरणद्वारनिर्गत सिन्धुरस्ति उदीच्यतोरणद्वारनिगेता रोहितांशा नदी विद्यते महापद्म ह्रदप्रभवा दक्षिणतोरणद्वारनिर्गता रोहिता नदी विद्यते महापद्मदप्रभवा-उदोच्यतोरणद्वारनिर्गता खलु-हरिकान्ता नदी वर्तते । तिगिच्छहदप्रभवा दक्षिणतोरणद्वारनिर्गता खलु हरिता नदी वर्तते' तिगिच्छहदप्रभवा उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता सीतोदा नदी वहति केसरिहदप्रभवा दक्षिणतोरणद्वारनिर्गता सोता. नदी वर्तते, केसरिहूदप्रभवा-उदीच्यतोरणद्वारनिःसृता खलु नरकान्ता नदी विद्यते पुण्डरीक हृदप्रभवा दक्षिणतोरणद्वारनिर्गता नारीकान्ता नदी प्रवति, तद्हृदप्रभवा उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता रूप्यकुलानदी भवति । है । अब पद्मद आदि से निकली हुई गंगा आदि चौदह महा नदियों के स्वरूप आदि का प्ररूपण करने के लिए कहते हैं - जम्बूद्वीप में गंगा आदि अर्थात् (१) गंगा (२) रोहिता (३) हरिता (४) सीता (५) नरकान्ता (६) सुवर्णकूला और रक्ता, ये सात महानदियाँ पूर्व दिशा की ओर अभिमुख होकर भरत आदि क्षेत्रों में बहती हुई पूर्व लवणसमुद्र में प्रवेश करती हैं। सिन्धु आदि अर्थात् (१) सिन्धु (२) रोहितांशा (३) हरिकान्ता (४) मीतोदा (५) नारिकन्ता (६) रूप्यकूला और रक्तवती, ये सात महानदियाँ पश्चिम की ओर बहती हुई पश्चिम लवणसमुद्र में प्रवेश करती हैं। एक-एक क्षेत्र में दो-दो नदियाँ समझनी चाहिए । उनमें गंगा नदी पद्महूद से उत्पन्न होती है और पूर्व तोरण द्वार से निकलती है । इसी पद्महद से निकलने वाली और पश्चिम तोरणद्वार से निकलने वाली सिन्धु नदी है इसी पमहूद से उत्तरीय तोरणद्वार से रोहितांशा नदी निकलती है। रोहिता नदी महापद्महूद से उद्गत होती है और दक्षिणी तोरणद्वार से निकलती है। महापमहद से, उत्तरीय तोरणद्वार से हरिकान्ता का उद्गम होता है । .. हरिता नदी तिगिच्छद से दक्षिणीतोरणद्वार से निकलती है सीतोदा नदि इसी उत्तरीय तोरणद्वार से निकलती है । सीता नामक नदी केसरी हुद से उत्पन्न होती और दक्षिणी तोरण द्वार से निकलती है। नरकान्ता भी केसरी हूद से निकलती है और उत्तरीय तोरणद्वार से होकर बहती है ।नारीकान्ता पुण्डरीक हृद से उद्गत होकर दक्षिणी तोरणद्वार से निकल कर बहती है । इसी हद से उद्गत होकर उत्तरीय तोरणद्वार से रूपयकूला नदी बहती है।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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