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________________ AAKAAMAANrs.nn तत्वार्थसूत्रे महारम्भमहापरिग्रहपञ्चेन्द्रियवधमांसाहारैर्नारकायुष्यकर्म बध्यते। तत्रा-ऽऽरम्भस्तावत् प्राणिपोडाजनकव्यापारः, परिग्रहः खलु क्षेत्र-वास्तु-हिरण्यादिषु ममत्वलक्षणः पञ्चेन्द्रियवधः कुमांसा हारश्च तैर्महताऽऽरम्भेण-महता परिग्रहेण पञ्चेन्द्रियवधेन मांसाहारेण च मांसभक्षणरूपेण नारकायुष्यकर्मबन्धो भवतीति भावः ॥७॥ तत्त्वार्थनियुक्ति:-पूर्व धधिकाशीतिपापकर्मसु क्रमशः पञ्चज्ञानावरण - नवदर्शनावरणाऽसातावेदनीयमिथ्यात्व षोडशकषायवेदनीय नवनोकषायवेदनीयपापकर्मणां बन्धहेतवः प्रतिपादिताः सम्प्रति-क्रमप्राप्तस्य नारकायुष्यस्य पापकर्मणो बन्धहेतून् प्रतिपादयितुमाह---महारंभमहापरिग्गहपंचिंदियवहमंसाहारेहिं नारगाउए-” इति । ___ महारम्भमहापरिग्रहपञ्चेन्द्रियवधमांसाहारैर्नारकायुष्कं कर्म बध्यते । तत्रा-ऽऽरम्भः खलुप्राणातिपातजनको व्यापारो यान्त्रिकादिलक्षणः, महापरिग्रहश्च बाह्याभ्यन्तरवस्तुविषयममत्वलक्षणो धन-धान्य-क्षेत्र-वास्त्वादिविषयः, आरम्भश्च परिग्रहश्चेति, आरम्भपरिग्रहो, महांश्चारम्भो महांश्च परिग्रह इति महारम्भमहापरिग्रहो, पञ्चेन्द्रियवधः मांसाहारः तैः खलु महारम्भ-महापरिग्रहपञ्चेन्द्रियवध-मांसाहारैर्नारकायुष्यकर्मबन्धो भवति । तथाच-प्राणातिपातादिक्रूरकर्मसततप्रवर्तन-परद्रव्यापहरण --विषयातिगार्थ्यकृष्णलेष्याऽभिजातरौद्रध्यानमरणकालता पञ्चेन्द्रियवधमांसाहारादयो नारकायुष्यस्य पापकर्मणो बन्धहेतवो भवन्तीति फलितम् । प्राणियों को पीड़ा पैदा करने वाली प्रवृत्ति आरंभ कहलाती है। क्षेत्र, वास्तु (मकान आदि), हिरण्य स्वर्ण आदि पर पदार्थी में ममत्व होना परिग्रह है। पञ्चेन्द्रिय जीवों को हिंसा और मांसाहार प्रसिद्ध ही हैं। इन चार कारणों से नरकायु कर्म का बंध होता है ॥७॥ तत्त्वार्थनियुक्ति—पूर्वोक्त वयासी पापकर्मप्रकृतियों में से पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषायबेदनीय और नौ नो कषाय वेदनीय पापकर्मों के बन्ध के कारण बतलाये जा चुके हैं । अब क्रमप्राप्त नरकायु पापकर्म के बन्धहेतुओं का कथन किया जाता है महारंभ, महापरिग्रह, पंचेन्द्रिय वध और मांसाहार से नरकायु का बंध होता है । प्राणातिपातजनक व्यापार को आरंभ कहते हैं । धन-धान्य-क्षेत्र-वास्तु आदि बाह्य वस्तुओं में ममत्व होना परिग्रह है। महान् आरंम और महान् परिग्रह महारंभ और महापरिग्रह कहलाता है । इनसे तथा पंचेन्द्रिय जीवों का वधाऔर मांस का भक्षण करने से नरकायु कर्म का बंध होता है । इस कथन का फलितार्थ यह है कि हिंसा आदि क्रूर कर्मों में सदैव प्रवृत्ति करने से, पराये द्रव्य का अपहरण करने से, इन्द्रियविषयों में अन्त्यन्त गृद्धि रखने से, कृष्णलेश्या के कारण उत्पन्न होने वाले रौद्रध्यान से, पंचेन्द्रिय प्राणी के बध से और मांसाहार आदि से नरकायु पापकर्म का बन्ध होता है
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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