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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ०४ सू० १७ भवनवासीनां विशेषतो दशमेदनिरूपणम् ५०३ किण्णर-किपुरिस-महोरग-गंधव्व-जक्ख-रक्खस-भूय-पिसायभेदा-" इति । वानव्यन्तराःवने भवाः--वाना वनचराः, विविधम्-अन्तरम् आवसनं येषां ते व्यन्तराः वानाश्चते व्यन्तराश्चेति वान व्यन्तराः खल्वष्टविधाः सन्ति । किन्नर-किम्पुरुष–महोरग-गन्धर्व-यक्ष-राक्षस-भूत-पिशाचभेदात् तथाच--- यस्मात्खल्वस्तिर्यगूर्ध्वञ्च त्रिष्वपि लोकेषु स्वातन्त्र्येण-स्वेच्छया पराभियोगाच्चशक्रादिदेवेन्द्रचक्रवर्याद्याज्ञया विचरन्तः अनियतगतिप्रचाराः सन्तः प्रायेण प्रतिपतन्ति, मनुष्यानपि केचन व्यन्तरा भृत्यवदुपचरन्ति, विविधेषु च शैलकन्दरान्तरवन--विवरादिपु तियेंग्लोके प्रतिवसन्ति, तस्माद्-वानव्यन्तरा इति व्यपदिश्यन्ते । उत्तराध्ययनधृताऽष्टवानव्यन्तरपाठक्रमेतु-पिशाच-भूत-यक्ष-राक्षस-किन्नर-किम्पुरुषमहोरग-गन्धर्वाणामित्थं पाठक्रमः । ___ उक्तञ्च प्रज्ञापनायां १ पदे देवाधिकारे "वाणमंरा अट्ठविहा, पण्णत्ता तंजहा किण्णरा, किंपुरिसा, महोरगा, गंधव्वा, जक्खा, रक्खसा, भूया, पिसाया-" इति । वानव्यन्तराअष्ठविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-किन्नराः-किम्पुरुषाः-महोरगाः-गन्धर्वाः-यक्षाः-राक्षसाः-भूताःपिशाचाः, इति-॥१८॥ मूलसूत्रम्---"जोइसिया पंचविहा, चंदसूरगहणक्खत्तताराभेदओ-"॥१९॥ छाया-ज्योतिष्काः पञ्चविधाः, चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रतारामेदात्-"॥१९॥ आठ प्रकार के हैं-किन्नर किम्पुरुष, महोरग, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच । वन में रहने वाले वान कहलाते हैं और विविध देशान्तरों में रहने वाले व्यन्तर कहलाते हैं । वान जो व्यन्तर हैं, वे वानव्यन्तर कहे जाते हैं । वानव्यन्तर योनि के ये देव आठ प्रकार के हैं- किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत, और पिशाच । ये देव अधोलोक, मध्य लोक और ऊर्ध्वलोक में तीनों लोकों में स्वतंत्रतापूर्वक इच्छानुसार विचरण करते हैं और देवेन्द्र-शक तथा चक्रवर्ती की आज्ञा के अनुसार भी विचरण करते हैं। इनका गतिप्रचार अनियत होता है। कोई - व्यन्तर भृत्य के समान मनुष्यों की भी सेवा करते हैं ' तिर्छ लोक में अनेक प्रकार की शैल, ककरा, वन और विल आदि स्थानों में निवास करते हैं । इस कारण इनकी संज्ञा वानव्यन्तर है। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार इन आठ भेदों का क्रम इस प्रकार है-पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धवें, । प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद में देवाधिकार में कहा है वानव्यन्तर देव आठ प्रकार के कहे गये हैं , यथा-किन्नर , किम्पुरुष, महोरग , गन्धर्व , यक्ष , राक्षस , भूत , और पिशाच ॥ १८ ॥ सूत्रार्थ----'जोइसिया पंचविहा' इत्यादि । सूत्र. ॥१९॥ ज्योतिष्क देव पाँच प्रकार के है
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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