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________________ vvvvvvvv दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू ३. पुण्यस्य फलभोगप्रकारनिरूपणम् ५३७ सातम्-१ उच्चैर्गोत्रम्-१ नरतिर्यग्देवायूंषि–३ मनुष्यदेवगती–२ पच्चेन्द्रियजातिः-१ तनुपञ्चकम्-५ अङ्गोपाङ्गत्रितयमपि-३ समचतुरस्रसंस्थानम्-१ वज्रर्षभनाराचसंहननम्-१ वर्णादिचतुष्कसुप्रशस्तम्-४ मनुष्यदेवानुपूयौँ-२ अगुरुलधु-१ पराघातः-१ उच्छ्वासः-१ आतपः-१ उद्योतः-१ सुप्रशस्ता विहायोगतिः- सादिदशकम्-१० निर्माणम्-१ तीर्थकरः-१ एता द्वाचत्वारिंशत् पुण्यप्रकृतयः सन्ति तथाच-सातावेदनीयम्, तिर्यगायुष्ययुगलरूपम्, मनुष्यायुषम् देवायुष्यम्, मनुष्यगतिः, देवगतिः, पञ्चेन्द्रियजातिः, औदारिकशरीरम् , वैक्रियशरीरम् , आहारकशरीरम्, तैजसशरीरम्, कार्मणशरीरम् औदारिकशरीराङ्गोपाङ्गम्, वैक्रियशरीराङ्गोपाङ्गम, आहारकशरीराङ्गोपाङ्गम्, वज्रर्षभनाराचसंहननम्, समचतुरस्त्रसंस्थानम, शुभवर्णः, शुभगन्धः, शुभरसः, शुभस्पर्शः, मनुष्यानुपूर्वी, देवानुपूर्वी अगुरुलघुनाम, पराधातनाम, उच्छ्वासनाम, आतपनाम उद्द्योतनाम, प्रशस्तविहायोगतिः, निर्माणनाम, तीर्थकरनाम सनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, प्रत्येकशरीरनाम, स्थिरनाम, शुभनाम सुभगनाम, सुस्वरनाम, आदेयनाम, यश कीर्तिनाम, उच्चैर्गोत्रनामभेदैः पुण्यस्य फलं सुखमनुभूयते जीवैः ॥३॥ शुभ कर्म रूप पुण्य का सुखानुभव रूप फल वयालीस प्रकार से प्राप्त होता है । वह बयालीस प्रकार इस तरह हैं—(१) सातावेदनीय (२) उच्चगोत्र (३) मनुष्यायु (४) तियेचायु (५) देवायु (६) मनुष्यगति (७) देवगति (८) पंचेन्द्रियजाति (९) औदारिक शरीर (१०) वैक्रियशरीर (११) आहारकशरीर (१२) तैजसशरीर (१३) कार्मणशरीर (१४) औदारिकअंगोपांग (१५) वैक्रिय-अंगोपांग (१६) आहारक अंगोपांग (१७) वज्रऋषभनाराचसंहनन (१८) समचतुरस्रसंस्थान (१९) शुभवर्ण (२०) शुभगंध (२१) शुभरस (२२) शुभस्पर्श (२३) मनुष्यानुपूर्वी (२४) देवानुपूर्वी (२५) अगुरुलधु (२६) पराघात (२७) उच्छ्वास (२८)आतप (२९) उद्योत (३०) सुप्रशस्त विहायोगति (३१-४०) त्रसदशक अर्थात् त्रस, बादर पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर आदेय, यशःकीर्ति, तथा (४२) तीर्थकरप्रकृति और (४१) उच्चगोत्र निर्माण यह वयलीस पुण्यप्रकृतियाँ कही गई हैं। अभिप्राय यह है कि पूर्वोपार्जित पुण्य के फलस्वरूप सातावेदनीय की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार तिर्यंचायु, मनुष्यायु, देवायु, मनुष्यग़ति, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, वैक्रिय शरीर, आहारक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, औदरिकशरीरांगोपांग, वैक्रियशरीरांगोपांग, आहारकशरीरांगोपांग, वर्षभनाराचसंहनन, समचतुरस्रसंस्थान, शुभ (इष्ट) वर्ण, शुभगंध, शुभरस, शुभस्पर्श, मनुष्यानुपूर्वी, देवानुपूर्वी अगुरुलधुनाम पराघातनाम, उच्छ्वासनाम आतपनाम, उद्योतनाम, प्रशस्तविहायोगति, निर्माणनाम तीर्थकरनाम, सनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम प्रत्येकशरीरनाम स्थिरनाम, शुभनाम, सुभगनाम, सुस्वरनाम आदेयनाम यशःकीर्तिनाम और उच्चगोत्रनाम इन भेदों से पुण्य का फल भोगा जाता है ॥३॥
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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