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________________ दीपिकनियुक्तिश्च ०१ नवतत्वनिरूपणम् २७ मलम् ---"बेंदियतिदियचउरिदिय-पंचिंदिया य तसा सू० ८. छाया—द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय पञ्चेन्द्रियाश्च त्रसाः" सू०८ दीपिका-पूर्व तावत् त्रस-स्थावरभेदेन संसारिणो जीवाः द्विविधा भवन्ति इति प्रतिपादितम्, सम्प्रति-तेषामेव त्रसानां स्थावराणाञ्च स्वरूपामि विशदरूपेण क्रमशः प्ररूपयितुमाह-बेइंदिय-तिदिय -चउरिदिय-पंचिंदिया य तसा-"इति-द्वीन्द्रियाः-त्रीन्द्रियाः-चतुरिन्द्रियाः-पञ्चेन्द्रियाः-चकारात् गतित्रसत्वेन बादरतेजोवायुकायिका अपि त्रसा उच्यन्ते । तत्र–स्पर्शन-रसनयुक्ताः द्वीन्द्रियाः -शंख-शुक्ति-वराट-कादयः, स्पर्शन-रसन-ब्राण-चक्षुर्युक्ताः-कुन्थु-वृश्चिक-शतपदीन्द्रगोपयूका-लिक्षा-मत्कुण-पिपीलिकादयस्त्रीन्द्रियाः । स्पर्शन-रसन-प्राण-चक्षुर्युक्ताः-दंश-मशक-पतङ्गं -भ्रमरादयश्चलुरिन्द्रियास्तु अण्डज-पोतज-जरायुजादयः ।। सूत्र ८॥ नियुक्तिः-पूर्वं संसारिजीवानां स-स्थावरभेदेन द्वैविध्यं प्रतिपादितम् , सम्प्रति तानेव त्रसान् -स्थावरांश्च विशेषरूपेण प्रतिपादयितुं-क्रमशः सूत्रद्वयमाह-"बेंदिय-तिंदिय चउरिदिय-पंचिंदिया य तसा-' इति । द्वीन्द्रियाः-त्रीन्द्रियाः-चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियाः चकारात् गति त्रसत्वेने यादरतेजोवायुकायिका अपि त्रसाः व्यपदिश्यन्ते । तत्र—द्वीन्द्रियाः कृमिप्रभृतयः, मूलसूत्रार्थ--'बेदियतिंदिय बउरिदिय' इत्यादि।। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव त्रस हैं ॥८॥ तत्त्वार्थदीपिका--त्रस और स्थावर के भेद से संसारी जीव दो प्रकार के कहे जा चुके हैं । अब उन त्रस और स्थावर जीवों का स्वरूप क्रमशः विस्तार के साथ कहते हैं द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और 'च' शब्द का ग्रहण करने से बादर तेज़स्कायिक तथा वायुकायिक जीव त्रस कहलाते हैं । इनमें से जो जीव स्पर्शन और रसना इन दो इन्द्रियों में युक्त होते हैं, वे द्वीन्द्रिय कहलाते हैं, जैसे- शंख, सीप, कौड़ी आदि । जो स्पर्श रसना और घ्राण इन्द्रियों से युक्त होते हैं, वे त्रीन्द्रिय कहलाते हैं, जैसे- कुन्थु, विच्छू, शतपदी, इन्द्रगोप, जूं , लीख, खटमल चिउँटी आदि । स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु से युक्त चौइन्द्रिय कहलाते हैं, जैसेडांस, मच्छर, पतंग, भ्रमर बिच्छू आदि अंडज (अंडे में उत्पन्न होने वाले ), पोतज़ (पोत से उत्पन्न होने वाले ) और जरायुज (जरायु -चमड़े की पतली झिल्ली (कोथली) में उत्पन्न होने वाले ) जीव पंचेन्द्रिय होते हैं ॥८॥ तत्त्वार्थनियुक्ति-त्रस और स्थावर के भेद से संसारी जीवों के दो भेद कहे जा चुके हैं। अब उनका विस्तार से प्रतिपादन करने के लिए दो सूत्र कहते हैं..द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय तथा 'घ' शब्द के ग्रहण से बादर तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव त्रस कहलाते हैं । इनमें कृमि आदि द्वीन्द्रिय,, पिपीलिका आदि .
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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