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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ. २. सू. २८ ख्कन्धानां बन्धत्वनिरूपणम् ३११ "समस्निग्धतया बन्धो न भवति, समरूक्षतया पि न भवति । विमात्रस्निग्धरूक्षत्वेन बन्धस्तु स्कन्धानाम् ॥ १ ॥ "स्निग्धस्य स्निग्धेन द्वयधिकेन रूक्षस्य रूक्षेण द्वयधिकेन ॥ स्निग्धस्य रूक्षेण उपैति बन्धो जघन्यवों विषमः समो वा ॥१॥ ॥२८॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्व संघाताद् एकत्वलक्षणात् स्कन्धाः व्यणुकादय उत्पद्यन्ते इत्युक्तम्, तत्र-स खलु संघातः किं संयोगमात्रादेव भवति ? आहोस्वित् संयोगविशेशात् ? इत्याशङ्कासमाधातुमाह-संयोगे सति बद्धस्य संघातो भवति, संघाते सति बद्धस्य सतः स्कन्धपरिणामो भवतीति । तत्र-एकत्वपरिणामः खलु बन्धः केन प्रकारेण द्वयोः परमाण्वोः बहूनां परमाणूनां जायते-? किं परस्परानुप्रवेशेन, उताहो सर्वात्मना प्रवेशाभावेऽपि तथाविधो बन्धो भवति ? तत्र-परमाण्वोः-परमाणूनां वा शुषिराभावात् परस्परानुप्रवेशस्तावन्नैव सम्भवति । अपितु-परमाणूनां परिणतिविशेषात् सर्वात्मना सर्वथा बन्धो भवति । तथाचा-ऽयोगोलकवत् परस्परानुप्रवेशाभावेऽपि गुणविशेषात् सर्वात्मना-एकत्वपरिणामलक्षणो बन्धो भवतीति फलितम्, कथं पुनः स तथाविधो बन्धो गुणविशेषाद् जायते-१ इत्याकाङ्काया 'स्निग्ध पुद्गल का दो अंश अधिक स्निग्ध पुद्गल के साथ और रूक्ष का दो अंश अधिक रूक्ष पुद्गल के साथ, स्निग्ध का रूक्ष के साथ बन्ध होता है; परन्तु जघन्य गुण वाले पुद्गल का किसी के भी साथ बन्ध नहीं होता है ॥२८॥ तत्त्वार्थनियुक्ति --पहले कहा गया है कि एकत्व रूप संघात से घणुक आदि स्कन्धों की उत्पत्ति होती है, मगर वह संघात संयोगसामान्य से होता है अथवा विशेष प्रकार के संयोग से होता है ? इस प्रश्न का समाधान करने के लिए कहते हैं-संयोग होने पर बद्ध का संघात होता है और संघात होने पर बद्ध का स्कंध रूप परिणाम उत्पन्न होता है । एकत्वपरिणाम रूप बन्ध दो परमाणुओं का अथवा बहुत परमाणुओं का किस प्रकार से होता है ? क्या एक परमाणु में दूसरे परमाणु का प्रवेश होने से होता है या पूरी तरह प्रवेश न होने पर भी वह बन्ध हो जाता है ? परमाणुओं में पोलापन तो होता नहीं है, इस कारण बे एक दूसरे में प्रविष्ट नहीं हो सकते, किन्तु परमाणुओं के परिणमन विशेष से ही सर्वथा सर्वात्मना बन्ध हो जाता है । इससे यह फलित हुआ कि लोहे के गोले में अग्नि जैसे समा जाती है वैसे एक परमाणु दूसरे परमाणु में समाता नहीं है, फिर भी गुण कि विशेषता के कारण सर्वात्मनापूर्ण रूप से एकत्वपरिणाम रूप बन्ध हो जाता है । किन्तु गुण की विशेषता के कारण बन्ध किस प्रकार हो जाता है ? इस प्रकार की आशंका होने पर कहते हैं
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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