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________________ २८६ तत्त्वार्थसूत्रे ___ सूक्ष्मत्वपरिणतःपुनरपरः स्कन्धः सत्यपि तद्भेदे संघातान्तरसंयोगात् सूक्ष्मत्वपरिणामोपरमे बादरत्वोत्पत्तौ सत्यां चाक्षुषो भवति. । अथा-ऽचाक्षुषाणां परमाणूनां समुदायोऽपि परमाणुमात्र एव भवति, स कथमतिशयाधानमन्तराचाक्षुषो भवेदिति चेद्-? अत्रोच्यते-सर्वस्यैव वस्तुनो विद्यमानात् परिणामात् परिणामान्तरं भिन्नं भवत्येव । तथाच परमाणुत्वपरिणामाच्चाक्षुषत्वपरिणामस्य भिन्नत्वात् परमाणवस्तावद् अणुत्वपरिणामपरिणतत्त्वं विहाय स्नेहरूक्षताविशेषात् स्थूलत्वपरिणतिमासादयन्ति । स्कन्धेषु चाऽष्टविधानां स्पर्शानां यथासम्भवं प्रतिपादितत्वात्, परमाणुषु पुनश्चतुर्विधस्यैव स्पर्शस्य स्निग्ध-रूक्ष-शीतोष्णात्मकस्य सत्त्वात्, तत्राऽपि एकस्मिन् परमाणौ परस्पराऽविरोधिस्पर्शद्वयं भवति । ____बन्धपरिणतौ च-स्निग्धरूक्षलक्षणं स्पर्शद्वयमुपयुज्यते, केचन-परमाणवो रूक्षपरिणतिशालिनः, केचन स्निग्धपरिणामपरिणता भवन्ति. तदुभयं तु रूक्षस्निग्धरूपं परस्परविरुद्धत्वादेकस्मिन् परमाणौ न सम्भवति । तत्राऽपि-केचित् परमाणव एकगुणस्निग्धत्वपरिणता यावदनन्तगुणस्निग्धत्वपरिणता भवन्ति । एवम्-रूक्षत्वेऽपि बोध्यम् .. परमाणवश्च ते सर्वेऽपि सजातीया एव न केचिद् विजातीया अपि भवन्ति । रूप-रस.गन्ध-स्पर्शस्कंध का भेद होने पर भी वह अचाक्षुष ही बना रहता है। और इस कारण वह अचाक्षुष ही रहता है। कन्तु दूसरा कोई सूक्ष्म स्कंध भेद होने पर दूसरे स्कंध में मिल जाता है । उस समय उसका सूक्ष्म परिणाम हट जाता है उसमें बादर परिणाम उत्पन्न हो जाता है और वह चक्षुग्राह्य बन जाता है ।। __ शंका-अचाक्षुष परमाणुओंका समुदाय भी परमाणुमात्र ही होता है । वह किसी प्रकार की विशेषता उत्पन्न हुए विना चाक्षुष कैसे हो सकता है ? समाधान--सभी वस्तुओं के मौजूदा परिणाम से कोई दूसरा परिणाम उत्पन्न होता है तो वह भिन्न ही होता है । इस प्रकार परमाणु रूप परिणमन से चाक्षुष परिणमन भिन्न ही हैं । परमाणु अपने परमाणुत्व-परिणाम को त्याग कर स्निग्धता-रूक्षता के कारण स्थूल परिणमन को प्राप्त कर लेते हैं। स्कंधों में यथासम्भव आठों प्रकार के स्पर्श कहे गये हैं, परमाणुओं में स्निग्ध रूक्ष, शीत और उष्ण, ये चार स्पर्श ही होते हैं इनमें से भी परस्पर. अविरोधी दो स्पर्श ही एक परमाणु में होते हैं । बन्ध रूप परिणति के लिए स्निग्धता और रूक्षता -इन दो स्पर्शी की ही आवश्यकता होती है, कोई परमाणु सूक्ष्म परिणाम वाले होते हैं, कोई स्निग्ध परिणाम वाले । स्निग्धता और रूक्षता परस्पर विरोधी धर्म हैं, वे एक परमाणु में नहीं रह सकते। उनमें भी कोई परमाणु एक गुण स्निग्ध होते हैं, कोई दो गुण स्निग्ध होते हैं यावत् कोई अनन्त गुण स्निग्ध चिकना भी होते हैं इसी प्रकार रूक्षता के विषय में भी समझना चाहिए। सामान्य रूप से सभी परमाणु सजातीय ही होते हैं, कोई विजातीय नहीं होते
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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