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________________ MAMMA २६८ तत्त्वार्थसूत्रे __ नापि--तमो गुणः सम्भवति, तदाश्रयाऽनुपलब्धेः, गुणस्य-द्रव्याश्रितत्वेनैवोपलभ्यमानस्वात्, प्रकाशविरुद्धत्वाच्च, । एवं-तमः कर्माऽपि न सम्भवति, कर्मणोऽपि-द्रव्याश्रितत्वेनैकोपलभ्यमानत्वेन तमस आश्रयाऽनुपलब्धेः । तमो यदि क्रिया स्यात्, तर्हि तस्य क्रियारूपस्य तमसआश्रयोऽपि कश्चिदुपलभ्येत, यतश्च-तस्याश्रयो नोपलभ्यते, अतो न तमः क्रियापि भवितुमर्हति, अपितु-तेजसो यत्राऽभावो भवति तत्रैव-तम उपलभ्यते, तेजसो द्रव्यान्तरावरणाच्चान्धकारो भवति । तस्मात्-तेजोऽभाव एव तमः न तु पुद्गलपरिणामः इतिचेत् ? मैंवम् । तमस्तावत् पौद्गलमेव कुड्यादिवत्-व्यवधानक्रियासामर्थ्यात्, मूर्तत्वात् , स्पर्शवत्वात् , परमाणुकृतत्वाच्च । तथाच-अमूतत्व-स्पर्शरहितत्व-परमाण्वकृतल्वानां हेतुत्रयाणां तमसोऽपौद्गलिकत्वसाधकानामसिद्धत्वात् । __अथ तमसो मूर्तत्वादिमत्वे कथं न स्पर्शादय तत्र संलक्ष्यन्तेऽस्माभिरिति चेत्-अत्रोच्यते तमसस्तथाविधपरिणतिशालित्वात्-गवाक्षदृश्यरेणुस्पर्शादिवत् तस्य स्पर्शादयो नाऽनुभूयन्ते । तथा जलस्याग्निना विरोधः, एवं तैजसप्रकाशेन सह तमसोऽपि पुद्गलपरिणामस्य विरोधो भवति, अलिन्दकस्थापितप्रदीपरश्मीनां पुष्करा-ऽऽवर्तकधाराभिरप्यनुपघातात् न सर्वथा जलाऽनलयोर्विरोध एव, अपितु---उत्पत्तिस्थान एव विरोधो बोध्यः । यदि-पौद्गलिकं न स्यात् तदा-तेजोऽभावेन-तमसा प्रकाशस्य विरोथो न स्यात् इति भावः । “उक्तञ्चोत्तराऽध्ययने २८ अध्ययनेअमूर्त होने के कारण स्पर्श से रहित होने के कारण प्रकाश से विरुद्ध होने के कारण और परमाणुओं द्वारा उत्पन्न न होने के कारण वह पुद्गल, द्रव्य का परिणाम नहीं हो सकता । ___ अन्धकार गुण भी नहीं हो सकता, क्योंकि उसका आधार उपलब्ध नहीं होता | गुण द्रव्य के आश्रित ही होता है । प्रकाश का विरोधी होने से भी अन्धकार गुण नहीं हो सकता। अन्धकार कर्म भी नहीं है, क्योंकि कर्म भी किसी न किसी द्रव्य के आश्रित ही होता है और अन्धकार का कोई आश्रय उपलब्ध नहीं होता । अन्धकार यदि क्रियारूप होता तो उसका कोई आश्रय भी प्रतीत होता, मगर उसका कोई आश्रय उपलब्ध नहीं होता, अतएव उसे क्रिया नहीं माना जा सकता । जहाँ तेज का अभाव होता है वहीं अन्धकार की प्रतीति होती है । तेज जब किसी दूसरे द्रव्य से आवृत हो जाता है तभी अन्धकार होता है । इससे यही सिद्ध होता है कि अन्धकार पुद्गल का परिणाम नहीं वरन् तेज का अभाव ही है। समाधान-यह कहना युक्तिसंगत नहीं । अन्धकार पौगलिक है, क्योंकि वह व्यवधान क्रिया में समर्थ होता है, मूर्त है, स्पर्शवान् है और परमाणुओं से उत्पन्न होता है, जैसे दीवार अतएव अन्धकार को अपौगलिक सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त आपके अमूर्त्तत्व, स्पर्शरहितत्व और परमाणु-अकृतकत्व, ये तीनों हेतु असिद्ध हैं। शंका-अगर अन्धकार मूर्त है तो हम लोगों को उसके स्पर्श आदि की प्रतीति क्यों नहीं होती?
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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