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________________ vvvvvvvvvvvvvvvvww तत्वार्थस्त्रे येषामस्ति ते संसारिणो व्यपदिश्यन्ते । तथाविधात् संसाराद् मुच्यन्ते स्म - इति मुक्ताः निधूताऽशेषकर्माणो जीवाः संसारान् मुक्ता इति व्यपदिश्यन्ते । अत्रचा-ऽसमस्तनिर्देशेन संसारिणो वक्ष्यमाण-औपशमिकक्षायिक-क्षायोपशमिक-औदयिक-पारिणामिक-सान्निपातिकस्वभावाः । मुक्ताः पुनस्तथाविधस्वभावनिर्मुक्ता भवन्तीति सूच्यते, बहुवचननिर्देशेन च तदुभयेषा मेवाऽनन्तत्वं व्यज्यते, चकारेण च–संसारिणां समनस्कादिभेदः । तथा चोक्तम्-स्थानाङ्गस्य २. स्थाने १. उद्देशके १०१ सूत्रे 'दुविहा सव्वजीवा पणत्ता तंजहा-सिद्धाचेव असिद्धाचेव'--इति । द्विविधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-सिद्धाश्चैव असिद्धाश्चैवेति । मुक्तानान्तु-अनन्तर-परम्परादि भेदो द्योत्यते । सूत्र ४॥ मूलसूत्रम्-'संसारिणो दुविहा तसा थावरा य' ॥५।। छाया- संसारिणो द्विविधाः प्रसाः स्थावराश्च ॥५॥ दीपिका-पूर्वसूत्रे-जीवानां संक्षेपतः संसारि-मुक्तभेदेन द्वैविध्यमुक्तम् । सम्प्रति संसारिजीवानधिकृत्य तद् विभागं प्रदर्शयन् प्रतिपादयति-संसारिणो द्विविधास्त्रसाः स्थावराश्च इति पूर्वसूत्रोक्ताः संसारिणो जीवास्तावद् द्विविधाः सन्ति त्रसाः स्थावराश्च । तत्र-त्रसनाम अथवा-बलवान् मोह रूप संसार वाले जीव संसारी कहलाते हैं। या नारक आदि अवस्था रूप संसार वाले जीव संसारी कहलाते हैं । जो जीव इस प्रकार के संसार से निवृत्त हो चुके हैं, वे मुक्त कहलाते हैं । अर्थात् समस्त कर्मों से रहित जीव संसार से मुक्त कहे जाते हैं। ___ यहाँ समास रहित निर्देश करने से यह सूचित किया गया है कि आगे कहे जाने वाले औपशमिक, क्षायिक क्षायोपशमिक, औदयिक, पारिणामिक तथा सान्निपातिक स्वभाव वाले संसारी जीव होते हैं। मुक्त जीव क्षायिक और पारिणामिक भावों के अतिरिक्त शेष भावों से रहित होते हैं । बहुवचन के प्रयोग से यह प्रकट किया गया है कि :संसारी जीव भी अनन्त हैं और मुक्त जीव भी अनन्त हैं। च पद के प्रयोग से यह सूचित होता है कि संसारी जीवों के संज्ञी-असंज्ञी आदि अनेक प्रकार से भेद होते हैं । स्थानांग सूत्र के द्वितीय स्थान, प्रथम उद्देशक सूत्र १०१ में कहा है-सर्व जीव दो प्रकार के कहे हैं । सिद्ध और असिद्ध । मुक्तजीव अनन्तरसिद्ध, परम्परासिद्ध आदि के भेद से भिन्न हैं ॥४॥ मूलार्थ.---'संसारिणो दुविहा' इत्यादि ॥५॥ संसारी जीव दो प्रकार के हैं—त्रस और स्थावर ॥५॥ तत्त्वार्थदीपिका---पूर्वसूत्र में जीवों के संक्षेप में संसारी और मुक्त, ये दो भेद कहे गए हैं। अब संसारी जीवों के भेद बतलाते हैं - पूर्वोक्त संसारी जीव दो प्रकार के हैं-बस और स्था
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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