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________________ २६० तत्त्वार्थसूत्रे भवन्ति । अत एव-पुद्गलाः परमाण्वादिमहास्कन्धपर्यन्ताः शब्दाऽन्धकारोद्योतप्रभाछाया-ssतपबन्धसूक्ष्मबादरत्वसंस्थानभेदवन्तो भवन्तीति भावः ॥२०॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः- "पूर्वसूत्रे पुद्गलानां रूपर सगन्धस्पर्शाः पर्यायाः भवन्तीति प्रतिपादितम्, सम्प्रति-तेषामेव पुद्गलानां शब्दादयोऽपि परिणामा भवन्ति इति प्रतिपादयितुमाह-"संबंधयार-" इत्यादि । पुद्गलेषु तावत्-शब्दो द्विविधो भवति. भाषालक्षणः-तद्भिन्नश्च । - तत्र-भाषालक्षणोद्विविधः, साक्षरो-ऽनक्षरश्च । तत्र-साक्षरः वर्णपदवाकयात्मकः शास्त्राभिव्यअकः संस्कृत-तद्विपरीतभेदाद् आर्य-म्लेच्छव्यवहारप्रयोजको भवति । अनक्षरात्मकस्तु द्वीन्द्रियत्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-पञ्चेन्द्रियप्राणीनां ज्ञानातिशयस्वभावप्रतिपादनहेतुर्भवति । तत्र-तेषां ज्ञानातिशयैकेद्रियापेक्षयाऽवगन्तव्यः । एकेन्द्रियाणान्तु–ज्ञानमात्रं भवति, अतिशयज्ञानं न भवति-तेषामतिशयज्ञानहेत्वभावात, अतिशयज्ञानवान् सर्बज्ञ एकेन्द्रियाणां स्वरूपं निरूपयति स खलु भगवान् तीर्थङ्करः परमातिशयज्ञानवान् वर्तते, एष सर्वः शब्दः प्रायोगिको भवति । ___ अभाषात्मकोऽपि शब्दो द्विविधः, प्रायोगिकः-वैस्रसिकश्च । तत्र प्रायोगिकश्चतुर्विधो भवति, तत-वितत-धन-सौषिरभेदात् । तत्र-ततस्तावत् शब्दः चर्मतननहेतुकः पुष्कर-भेरीदुन्दुभिदर्दुरादिचर्मपात्रजन्यो भवति । विततः पुनस्तन्त्रीकृतवीणासुघोषादिप्रभवो बोध्यः । घनात्मकः शब्दस्तु-. शब्द अन्धकार, उद्योत, प्रभा छाया, आतप, बन्ध, सूक्ष्मत्व, बादरत्व, संस्थान और भेद भी पुद्गल के ही पर्याय हैं। अतएव पुद्गल शब्दादि वाले होते हैं ॥२०॥ तत्त्वार्थनियुक्ति-पहले कहा जा चुका है कि पुद्गल, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श पर्याय वाले होते हैं । अब यह बतलाते हैं कि शब्द आदि पर्याय भी पुद्गल के ही हैं। शब्द दो प्रकार का है-भाषात्मक और अभाषात्मक भाषात्मक शब्द के दो भेद हैं साक्षर और अनक्षर शब्द । जो शब्द वर्ण पद एवं वाक्यात्मक होता है, शास्त्र का अभिव्यंजक होता है, संस्कारयुक्त और संस्कारहीन के भेद से आर्य और अनार्यजनों के व्यवहार का कारण होता है, वह अक्षरात्मक कहलाता है । अनक्षरात्मक शब्द द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय प्राणियों के ज्ञानातिशय के प्रतिपादन का हेतु होता है । उनका ज्ञानातिशय एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा से जानना चाहिए । एकेन्द्रिय जीवों को सामान्यज्ञान होता है अतिशयज्ञान नहीं होता । अतिशयज्ञानवान् सर्वज्ञ एकेन्द्रियों के स्वरूप का निरूपण करते हैं । वह भगवान् तीर्थकर परमातिशयज्ञानी होते हैं। यह शब्द प्रायोगिक होते हैं। अभाषात्मक शब्द भी दो प्रकार के हैं प्रायोगिक और वैनसिक । प्रायोगिक शब्द के चार भेद हैं--तत, वितत, धन और सौषिर । पुष्कर, भेरी, दुन्दुभि, दर्दुर आदि चर्मवेष्टित वाद्यों का शब्द तत कहलाता है । वीणा सुघोषा आदि का शब्द वितत कहलाता है। ताल घंटा आदि के बजाने से उत्पन्न होने वाला शब्द धन कहा जाता है और वांसुरी तथा शंख आदि
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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