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________________ २३४ . तत्त्वार्थसूत्रे गौतम ! अधर्मास्तिकाये खलु जीवानां स्थाननिसदनत्वग्वर्तन मनसश्च एकत्रीभावकरणता ये चाऽप्यन्ये तथाप्रकाराः स्थिरा भावाःसबै तेऽधर्मास्तिकाये प्रवर्तन्ते । स्थानलक्षणः खलु अधर्मास्तिकायः आकाशास्तिकाये खलु भदन्त ! जीवानामजीवानाञ्च किं प्रवर्तते ? गौतम--! आकाशास्तिकाये खलु जीवद्रव्याणाञ्च-अजीवद्रव्याणाञ्च भाजनभूते एकेनापि तस्मिन् पुनाभ्यामपि पुनः स्वयमपि मायात् कोटिशतेनापि पुनः कोटिसहस्रमपि मायात् अवगाहलक्षणः खलु आकाशास्तिकायः-" इति ॥१५॥ मूलसूत्रम्- "सरीरवयमणो पाणापाणाणं सुहदुहजीवियमच्चूणं च निमित्ता पोग्गला-"॥१६॥ __ छाया-"शरीर-वचो-मनः-प्राणा-ऽपानानां सुख-दुःख-जीवित-मृत्यूनां च निमिसानि पुद्गलाः-" ॥१६॥ तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे-धर्माऽधर्माऽऽकाशानां लक्षणानि प्रतिपादितानि सम्प्रति-पुद्गलानां लक्षणमाह--"सरीरवयमणो" इत्यादि । औदारिक-वैक्रिया-ऽऽहारक तैजस-कार्मणरूपाणां पञ्च. विधशरीराणां वाचोमनसः-प्राणस्या-ऽपानस्य-सुखस्य-दुःखस्य जीवीतस्य-मृत्योश्च-उपग्राहकत्वेनोपकारकतया पुद्गला निमित्तानि भवन्ति । तथाच-शरीराद्युपकारकत्वं पुद्गलानां लक्षणमवगन्तव्यम् ॥१६॥ उत्तर--गौतम ! अधर्मास्तिकाय से जीवों के स्थान, निषीदन, त्वरवर्तन (लेटना), मन का स्थिरीकरण तथा इसी प्रकार के जो अन्य स्थिर भावहैं, वे सब अधर्मास्तिकाय से प्रवृत्त होते हैं; क्योंकि अधर्मास्तिकाय स्थिति लक्षण वाला है । प्रश्न-भगवन् ! आकाशास्तिकाय से जीवों और अजीवों का क्या प्रवृत्त होता है ? उत्तर-गौतम ! आकाशास्तिकाय जीवद्रव्यों और अजीवद्रव्यों का आधार है। वह एक से भी पूर्ण हो जाता है, दो से भी पूर्ण हो जाता है, उसमें सौ भी समा जाते हैं, सैकड़ों करोड़ भी समा जाते हैं और हजारों करोड़ भी समा जाते हैं । आकाशास्तिकाय का लक्षण अवगाह है ॥१५॥ मूलसूत्रार्थ-- "सरीरवयमणो पाणा' इत्यादि । सूत्र ॥१६॥ पुद्गल द्रव्य शरीर, वचन, मन, प्राणापान, सुख, दुःख, जीवन और मरण के कारण हैं ॥१६॥ तत्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्र में धर्म, अधर्म और आकाश के लक्षणों का प्रतिपादन किया गया है, अब पुदगलों का लक्षण कहते हैं-- पुद्गल, औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्मण इन पाँच शरीरों के वचन के, मन के, प्राण के, अपान के, सुख के, दुःख के, जीवन के और मरण के उपकारक होने में निमित्त होते हैं । अतएव शरीर आदि रूप उपकार करना पुद्गलों का लक्षण समझना चाहिए ॥१६॥
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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