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________________ ॥ अथ-द्वितीयोध्यायः॥ मूलसूत्रम्--"धम्माधम्मागासकालपोग्गला अजीवा,, ॥१॥ छाया-"धर्माधर्माकाशकालपुद्गला अजीवाः,, ॥१॥ तत्त्वार्थदीपिका-"प्रथमेऽध्याये जीवादि नवतत्त्वेषु एकचत्वारिंशतसूत्रैः साङ्गोपाङ्गं संक्षेपतो जीवतत्वं प्ररूपितम् । सम्प्रति क्रमप्राप्तं द्वितीयमजीवतत्त्वविषयमध्यायं प्ररूपयितुमाह-"धम्माधम्मागासकालपोग्गला अजीवा-" इति । धर्मः-अधर्म:-आकाशः कालः–पुद्गलश्चेत्येतें पञ्चाऽजीवाः । जीवभिन्नानि तत्त्वानि व्यपदिश्यन्ते इत्यर्थः ॥१॥ तत्त्वार्थनियुक्ति:--पूर्व यथायोगं द्रव्यभावप्राणपुञ्जवर्तिनो जन्तवो देवतिर्यङ्मनुष्यनारकविधानतः साकारानाकारोपयोगद्वयोपलक्षितचैतन्यशक्तितश्च प्रतिपादिताः सम्प्रति-धर्मादीन् पञ्चाऽजीवान् विधानतो लक्षणतश्च प्रतिपादयितुमाह-"धम्माधम्मागासकालपोग्गला अजीवा-" इति । अजीवाः-जीवद्रव्यविपर्ययास्तावद् धर्माऽधर्माऽऽकाशपुद्गलरूपा पञ्च सन्ति । एवञ्च-जीवादन्योऽजीव इति पर्युदासः सत एव वस्तुनः सम्भवति, विधिप्रधानत्वात् । तस्मात्-समानास्तित्वेषु भावेषु चैतन्यप्रतिषेधद्वारेण धर्मादिषु पञ्चसु-अजीवा इत्युक्तम् । तथाचोक्तम् द्वितीय अध्याय का प्रारंभ मूल सूत्रार्थ 'धम्माधम्मागास' इत्यादि-सत्र॥१॥ धर्म, अधर्म- आकाश, काल और पुद्गल अजीव हैं ॥१॥ तत्त्वार्थदीपिका-प्रथम अध्याय में जीव आदि नौ तत्त्वों में से जीव तत्त्व का इकतालीस सूत्रों द्वारा सांगोपांग प्ररूपण किया गया । अब क्रमप्राप्त दूसरे अजीव तत्त्व का इस अध्याय में निरूपण करने के लिए कहते हैं धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल, ये पाँच अजोव अर्थात् जीव से भिन्न तत्त्व हैं ॥१॥ तत्त्वार्थनियुक्ति---पहले यथायोग्य द्रव्य और भावप्राणों से युक्त जिवों का उसके देव तिर्यंच, मनुष्य और नारक के भेदों का, साकार और अनाकार उपयोग रूप चैतन्य शक्ति का प्रतिपादन किया गया है । अब धर्म अदि पाँच अजीवों के भेद और लक्षण बतलाकर उनका प्रतिपादन करते हैं। ___ अजीव अर्थात् जीव द्रव्य से विपरीत धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल ये पाँच अजीव हैं। जो जीव नहीं सो अजीव, यहाँ पर्युदास नामक नसमास है। इस समास से अजीव एकान्त निषेध रूप नहीं किन्तु विधिरूप ही तत्त्व सिद्ध होता है; क्योंकि पर्युदास में विधि
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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