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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० १ सू० ३८ भवनपत्यादिषु द्विवेदत्वनिरूपणम् १५७ यथा-ऽसुरकुमाराः-असुरकुमार्यश्च नागकुमाराः-नगकुमार्यश्चेत्यादिरीत्या-ऽसुरकुमारादीशान्तेषु पुवेदिनः केचिद्देवा भवन्तिः स्त्रीवेदिन्य काश्चिद्देव्योश्च भवन्ति। तेषु शुभगतिनामकर्मोदयापेक्षनिरतिशयसुखविशेषरूपपुंस्त्वस्त्रीत्ववेदानुभवात् सनत्कुमारादिषु पञ्चानुत्तरोपपातिकान्तेषु तु-केवलं पुरुषवेदिन एव देवा भवन्ति न तु-स्त्रीवेदिनो नापि-नपुंसकवेदिनो भवन्ति । अथ देवानां नपुंसकवेदः कथं न सम्भवतीतिचेत्-उच्यते चतुर्विधानामपि देवानां शुभगत्यादिनामगोत्रवेद्यायुष्कापेक्षमोहोदयादभिलषितप्रितीकारक मायाऽऽर्जवोपेतं करीषाग्निसदृशं स्त्रीवेदनीयमेकं पुंस्त्ववेदनीयं द्वितीयं पूर्वबद्धनिकाचितमुदितं भवति । न तु-तद्भिन्नं नपुंसकवेदनीयं कदापि, पूर्वभवे-नपुंसकवेद्मोहनीयकर्मणोऽबद्धत्वात् । सनत्कुमारादिषु तु-स्त्रीवेदमोहनीयकर्मणोऽप्यबद्धत्वात् तेषु स्त्रीवेदोऽपि न भवतीतिभावः ॥३८॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः-देवस्तावद चतुर्निकायोऽपि भवनपति-वानव्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिकरूपो द्विवेदो भवति । स्त्रीवेदवान्-पुरुष वेदवांश्च । तथाच-चतुर्निकाया अपि देवा नपुंसकवेदिनो न भवन्ति, अपितु-स्त्रीवेदिनः पुंदिनश्च भवन्ति । केचन देवाः स्त्रीवेदवेदिनो भवन्ति । केचन पुनः पुरुषवेदिनो भवन्ति । । कुमार और असुरकुमारियाँ, नागकुमार और नागकुमारियाँ, इत्यादि प्रकार से असुरकुमार से लेकर ईशान देवलोक तक कोई-कोई पुरुषवेदी देव होते हैं. और स्त्रीवेद वाली देवियाँ होती हैं। उनमें शुभगति नामकर्म के उदय से निरतिशय सुखविशेष रूप पुरुष और स्त्री वेद का अनुभव होता है । सनत्कुमार देवलोक से पाँच अनुत्तर विमानों तक केवल पुरुषवेद वाले ही देव उत्पन्न होते हैं; न स्त्रीवेदी और न नपुंसक वेदी होते हैं । देवों में नपुंसकवेद क्यों नहीं होता ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि चारों प्रकार के देवों में शुभगति आदि नाम गोत्र वेद्य और आयुष्क से सापेक्ष मोह के उदय से अभिलषित में प्रीति उत्पन्न करने वाला, माया आर्जव से युक्त छाणे की अग्नि के समान एक स्त्रीवेदनीय और दूसरा पुरुषवेदनीय हो, जो पहले निकाचित रूप में बाँधा है, अब उदय में आया है। इन दोनों से भिन्न नपुंसक वेदनीय का कदापि उदय नहीं होता, क्योंकि उन्होंने पूर्वभव में नपुंसक वेदमोहनीय कर्म का बंध नहीं किया है । सनत्कुमार आदि देवलोकों के देवों ने पूर्वभव में स्त्रीवेदमोहनीय कर्म का भी बन्ध नहीं किया, इस कारण वहाँ स्त्रीवेद भी नहीं होता है ॥३८॥ तत्त्वार्थनियुक्ति भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, इन चारों निकायों के देव दो वेद वाले होते हैं-स्त्रीवेद वाले और पुरुषवेद वाले । इस प्रकार चारों निकायों के देव नपुंसकवेदी नहीं होते, सिर्फ स्त्रीवेदी और पुरुष ही होते हैं। अर्थात् कोई पुरुषवेदी और कोई स्त्रीवेदी होते हैं।
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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