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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० १ सू० ३५ आहरकशरीरनिरूपणम् १५१ ___ औदारिकशरीरभ्य स्तैजसकार्मणानि अनन्तगुणानि भवन्ति । तैजसकार्मणानि प्रत्येक संसारिणां सर्वजीवानां भवन्ति, तस्मात्-अनन्तानि, न तु-बहूनां जीवानामेकं तैजसं-कार्मणं वा भवतीति भावः । इत्येवं नवभ्यो विशेषेभ्यः कारणेभ्यः औदारिकादिशरीराणां नानात्वं सिद्धम् । इदमत्र बोध्यम्-अन्तर्गतौ तैजसकार्मणे केवले भवतः, भवस्थतायां तैजसकार्मणे-औदारिकं चेति त्रीणि युगपद् भवन्ति । अथवा-तैजसकार्मणे च वैक्रियं चेति त्रीणि बोध्यानि । तिर्यङ्मनुष्याणां तैजसकार्मणौदारिकैः सह लब्धिप्रत्ययवैक्रियशरीरसद्भावे युगपदविविच्छिन्नप्रदेशत्वात् चत्वारि भवन्ति । चतुर्दशपूर्वधरमनुष्यस्याऽऽहारकलब्धौ सत्यां तैजसकामणौदारिकैः सह लब्धिप्रत्ययाहारकशरीर सद्भावे युगपदेवं चत्वारि भवन्ति । कमलनालतन्तुवदेवाऽविच्छेदेन एकजीवप्रदेशैश्चतुष्टयमपि प्रतिबद्धमवगन्तव्यम् । अनुत्पन्नलब्धेः संसारिणो जीवस्य तैजसकार्मणौदारिकाणि त्रीणि भवन्ति । अथवा कार्मणवैक्रिये देवनारकाणाम् । अनुत्पन्नलब्धीनां तिर्यङ्मनुष्याणां तैजसकामणौदारिकाणि युगपद् भवति । अनुत्पन्नवैक्रियलब्धेश्चतुर्दशपूर्वधरमनुष्यस्य तैजसकार्मणौदारिकाहारकाणि वा भवन्ति । साधारण जीवों का एक ही शरीर होता है। अतएव जीव अनन्त होने पर भी उनके शरीर असंख्यात ही होते हैं, अनन्त नहीं । औदारिक शरीर की अपेक्षा तैजस और कार्मण शरीर अनन्तगुणा हैं, क्योंकि ये दोनों शरीर समस्त संसारी जीवों को होते हैं और सब को अलग-अलग होते हैं। औदारिक शरीर के समान अनन्त जीवों का एक ही सैजस या कार्मण शरीर नहीं होता । इस प्रकार औदारिक आदि शरीरों में उक्त नौ आधारों से भेद होता है। यहाँ यह समझ लेना चाहिए की विग्रहगति के समय सिर्फ तैजस और कार्मण दो शरीर होते हैं भवस्थ दशा में तैजस, कार्मण और औदारिक ये तीन अथवा तैजस, कार्मण और वैक्रिय, ये तोन होते हैं तिर्यचों और मनुष्यों को तैजस, कार्मण और औदारिक शरीर के साथ जब लब्धिनिमित्तक वैक्रिय शरीर भी प्राप्त होता है तो एक साथ चार शरीर भी पाये जाते है। चतुर्दशपूर्वधारक मुनि को आहारकलब्धि प्राप्त हो और वह आहारक शरीर बनावे तो उस समय तैजस, कार्मण और औदारिक शरीर के साथ आहारक के होने से भी चार शरीर हो सकते हैं। जब एक जीव में चार शरीर एक साथ होते हैं तो जीव के प्रत्येक प्रदेश के साथ चारों शरीर का संबंध होता है। इस प्रकार लब्धिरहित संसारी जीव को तीन शरीर होते हैं-तैजस, कार्मण, औदारिक यदि वह देव या नारक हो तो औदारिक के बदले वैक्रिय शरीर होता है । वैक्रियलब्धि से रहित और आहारकलब्धि से सम्पन्न चतुर्दशपूर्वधर मनुष्य को तैजस; कार्मण, औदारिक तथा आहारक, ये चार शरीर होते हैं । अगर किसी मनुष्य या तिर्यन्च को वैक्रियलब्धि प्राप्त हो तो उसके तैजस, कार्मण, औदारिक तथा वैक्रय, ये चार शरीर एक साथ पाये जाते
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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