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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ०१ सू०२७ विग्रहगतिसम्पन्नजीवस्यानाहारकत्वम् १०३ मूलसूत्रम्-'तिसमयं सिया अणाहारगो-॥२७॥ छाया-त्रिसमयं स्यादनाहारकः-॥२७ तत्त्वार्थदीपिका पूर्व खलु सविग्रहाया गतेः प्ररूपणस्य कृतत्वात् सम्प्रति-तत् प्रस्तावात् विग्रहगति समापन्नस्य जीवस्याऽनाहारकत्वं प्रतिपादयितुमाह-'तिसमयं सिया अणाहारगे'-इति, त्रिसमयम्-त्रयाणां समयानां समाहारः त्रिसमयम्, एकसमयं-द्विसमयं त्रिसमयं वा विग्रह गतिसमापन्नो जीवोऽनाहारको भवति । तदतिरिक्तकाले तु-अनुसमयम् आहारको भवति । तत्र द्विविग्रहायां गतौ-एकं समयमनाहारको भवति । त्रिविग्रहायां गतौ तु-द्वौ समयौ-अनाहारको भवति । केवलीच-समुद्घातकाले तृतीय-चतुर्थ समयेषु त्रीन् समयान् अनाहारको भवतीति ॥२७॥ . तत्त्वार्थनियुक्तिः - पूर्व विग्रहगतिप्ररूपणं कृतम् सम्प्रति विग्रहगतिसमापन्नस्याऽनाहारकत्वं प्रतिपादयितुमाह ‘हति समयं सीया अणाहारगो-इति । विग्रहगतिसमापन्नो जीव एकं वा समर्थद्वौ वा समयौ-त्रीन् वा समयान् अनाहारको भवति । शेष कालम् अनुसमयम् आहारको भवति । तत्र विग्रहायां गतौ एकं समयमनाहारको भवति त्रिविग्रहायां-द्वौ समयौ-अनाहारको भवति । केवली च समुद्घातकाले-तृतीयचतुर्थपंचमसमयेषु त्रीन् वा समयान् अनाहारको भवति केचित्तु-विग्रहगतिसमापन्नस्यैव प्रस्तावात् केवलिसमुद्घातकालस्याऽप्रस्तुतत्वात् एकं वा समयं द्वौ वा समयौ अनाहारको भवति इत्येवाऽऽचक्षते-त्रीन् बा समयान् अनाहारको भवति इति नाऽनु मन्यते तन्न समीचीनम् सूत्रेऽस्मिन् सामान्यतोऽनाहारकस्यैव प्रस्तुत्वेन केवलिसमुद्घातकालस्यापि मूलसूत्रार्थ विग्रहगति वाला जीव अधिक से अधिक तीन समय तक अनाहारक रहता है ॥२७॥ तत्त्वार्थदिपिका-पूर्वसूत्र में सविग्रहा गति का निरूपण किया गया है, इसी प्रसंग को लेकर अब विग्रहगति को प्राप्त जीव की अनाहारकता का प्रतिपादन करते हैं--- विग्रहगति को प्राप्त जीव एक समय तक, दो समय तक अथवा तीन समय तक अनाहारक रहता है । इसके अतिरिक्त अन्य समयों में जीव निरन्तर आहारक रहता है। दो विग्रह वाली गति में एक समय तक अनाहारक रहता है और तीन विग्रह वाली गति में दो समय तक अनाहारक रहता है। केवली समुद्घात के काल में तीसरे, चौथे समय तक अनाहारक रहते हैं ॥२७॥ तत्त्वार्थनियुक्ति-पहले विग्रहगति की प्ररूपणा की गई है, अब विग्रहगति को प्राप्त जीव की अनाहारकता की प्ररूपणा करते हैं विग्रहगति को प्राप्त जीव एक, दो अथवा तीन समय तक अनाहारक होता है । शेष काल में प्रत्येक समय आहारक ही बना रहता है। दो विग्रह वाली गति में एक समय अनाहारक रहता है और तीन विग्रहवालीगति में दो समय पर्यन्त अनाहारक रहता है । समुद्घात करने के काल में केवली तीसरे, चौथे और पाँचवें समय में, इस प्रकार तीन समयों में अनाहारक होते हैं । कोईकोई कहते है कि यहाँ विग्रह गति का ही प्रकरण होने से केवली समुद्घात अप्रस्तुत है, अतः स्थापि अनाहारक
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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