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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (६५) समझ भी नहीं आती है; इस वास्ते कितनेक लोंगोंका इरादा है कि, इसको जिस ढबपर श्रीआनंदविजयजी महाराजजीने अपनी कलमसे प्रथम लिखा है, उसही ढबपर हिंदीभाषामें छपवाना चाहिये. जिससे, बहुत फायदा होनेका संभव है; सो प्रायः थोड़ेही कालमें यकीन है, छप जायगा. चौमासे बाद श्रीआनंदविजयजी वगैरह साधु अहमदाबादसे बिहार करके, श्री शत्रुजय तीर्थकी यात्रा करनेको पधारे. एक महीना "पालीताणा" शहरमें रहे, और निरंतर यात्रा करके अपना मनुष्यदेह, पावन करते रहे. इस श्री शत्रुजय तीर्थ ऊपरसे "शेठ प्रेमाभाई,” “शेठ नरशी केशवजी, " "शेठ वीरचंद दीपचंद" वगैरह देश गुजरातके संघकी मददसे बडे अद्भुत सुन्दर, और देखनेसें चित्त शांत होवे, ऐसे (३५) जिनबिंब देश पंजाबमें भेजे गये. इन जिन प्रतिमाके आनेसे देश पंजाबमें जैनधर्मका बडा उद्योत हुआ, और इन प्रतिमाके रखनेके वास्ते पंजाबके श्रावकोंको अपने २ शहेरमें जैनमंदिर बनवानेका ख्याल आया, और जिन मंदिर बनने शुरु हुये. पालीताणासे विहार करके "शिहोर, वरतेज, भावनगर" होकर “गोधा बंदर" में श्रीआन्दविजयजी पधारे. तहां "श्री नवखंडा पार्श्वनाथ" की यात्रा करके "वला, बोटाद" होकर “लिंबडी” शहेर पधारे, जहां पांचसो घर श्रावकोंके, और तीन जिन मंदिर है, श्री महाराजजीके पधारनेकी खुशीमें श्रावकोंने समवशरणकी रचना वगैरह महोच्छव किये. यहांके राजा साहिबने भी, श्रीआनंदविजयजी ( आत्मारामजी) महाराजजीके दर्शन पाये, और बातचीत करके बडेही आनंदको प्राप्त हुये. एक महीनेबाद लोंबडीसे विहार करके वढवाण धंधूका, धोलेरा होकर शहेर खंभात बंदर पधारे, जहां अनुमान एक हजार घर श्रावकोंके और दोसौ जिन मंदिर है. यहां बहुत पुराने ताडपत्रोंपर लिखे पुस्तक भंडारे देखे. कईएक शास्त्रोंका उतारा भी, करवा लिया. तथा पुस्तकादिककी मदद ठीक ठीक मिलनेसे "अज्ञान तिमिर भास्कर" नामा ग्रंथ जो शहेर अंबालामें बनाना सुरु किया था, यहां समाप्त किया, जो भावनगरकी “जैन ज्ञान हितेच्छु" सभाके तरफसे छपवाकर प्रसिद्ध किया गयाहै. जिसके पहिले हिस्सेमें, वेदादि शा. स्त्रोंमें यज्ञादि धर्मका जैसा विचार है,तैसा सप्रमाण दिखलाया है, और दूसरे हिस्सेमें,जैनमतका संक्षेपसें वर्णन कियाहै. और इस जगा "श्रीस्तंभन पार्श्वनाथजी की, जो कि बड़ी प्राचीन प्र. तिमा है, यात्रा करके बहुत खुश हुए. खंभातसे विहार करके " जंबूसर " होकर "भरुच बंदर पधारे; यहां अनुमान अढाईसें घर श्रावकोंके, और छ मंदिर बडे खुबसुरत है, और वीसमे तीर्थकर “श्रीमुनिसुव्रत स्वामी की, बहुत प्राचीन मूर्त्तिके दर्शन करके अत्यानंद प्राप्त हुये. भरुचसे विहार करके श्रीआनंदविजयजी, “ सुरत बंदर पधारे. श्रावक लोकोंने बडे महोत्सवसे शहर में प्रवेश कराया. ऐसा प्रवेश महोत्सव हुवा कि, उसको देखके सुरतके वासी बडे बडे बुजर्ग जैन और अन्यमति भी, कहने लगे कि, “ऐसा आदर पूर्वक प्रवेश महोत्सव आजतक हमने किसीका भी नहीं देखाहै.” श्रावकोंकी अतीव प्रार्थना होनेसे, संवत् १९४२ का चौमासा, सुरत शहरमें किया. चौमासेमें श्रावकोंकी अभिलाषापूर्वक, “ श्रीआचारांग सूत्र” सटीक, और "धर्मरत्न प्रकरण" सटीक, पर्षदामें सुनाते रहे. हजारों श्रावक श्राविका तिस वचनामृतको पीकर, मिथ्यात्व विषको दूर करते रहे; और अनेक प्रकारके उद्यापन, समवसरण रचना, अठाई महोच्छव वगैरह महोत्सव करके, श्रीजैनधर्मका उद्योत किया.इस चौमासामें श्रीआनंदविजयजीके धर्मोपदेशसे श्रावक लो For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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