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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पृष्ठ पंक्ति ४७८ २५ ४८० ६ १२ 64 19 " "" ४८७ ४८१ ६ दूसरी बेर छपी हैं. १७ ढया ढ्या "" ४८४ ४८५ ६ विन विघ्न ४८६ ६ इह० इह० 6 ू अगुद्ध १९ जगत्रय गुरोस्सौभाग्य "" ४९७ धान क्षितिर्न ४९४ १३ ४९५ ७ २३ १ " १५ ४८८ २२ ४८९ २४ ४९० ४ जगत्रय ५ पूष्पां पुष्पादि ११ ४९१ २० , ध्यान क्षतिर्न श्रेयकां संनिधानं श्रेयसां संनिधानं जगत्रयगुरोरसौभाग्य " ४९८ १५ जगत्रय जगत्रय ४९१ २३ परमेष्टि ४९१ २३ ५०६ ११ १०७ १२ विघ्न चिन्न दिकपाल दिक्पाल जगत्रयस्य जगत्रयस्य जगत्रयी जगत्रयी शक्रस्तव शक्रस्तव षडाववश्यक भय रिअवस २१ गिरिहामि १६ परमेष्टि लोहेण लोहेण वा २४ वसणं शुद्ध ४९९ ९ दसणं ५०१. २१ पुष्प २५ यात्राणां 39 ५०२ १० चंद्राद्वे ५०३ २० प्रियकर ५०४ १२ कृत व्यवच्छद बध्यते जगत्रय पुष्पां पुष्पादि गरिहामि परमेष्ठि बसणं किंचि जंजं ॥ किंचि ॥ जंजं षडावश्यक परमेष्ठि पंचिदिअट्टेण पंचिदिअण भव रिअसुव दंसण पुष्य त्रयाणां चाब्दे प्रियवर कृदू www.kobatirth.org व्यवच्छेद बध्यते (८) पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध ६ इति ५२० ५२१ ५२२ ५२६ ३१ ५३३ १६ समाचारी " ५३४ २० २१ के ५३९ ७ बौधमपसें ९ Jocahi, "" २२ स्वंडके १४ तिनको २४ करमें 77 ५३५ २९ तिस विषयतक हकीकात सें ५४१ १६ मोरको ५४१ १७ केवला ५४४ ५४५ ईति ४ धारासामान धारासमान २३ (स्तैत्येवैनमेतत्) (स्तोत्येवैनमेतत् ) ११ श्रीम ९४२१४ सिद्धि " 35 ५७१ 39 ५४९ १३ अठ ५ उपाधि २ श्रीजिनभद्रणि २३ जैनभासाः २२ मत्यानु ५६३ १० त्रतिके ५६५ १० सैवना For Private And Personal Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५६८ ८ मुक्तिका १२ केवल ५९९ १६ पुजन २१ नैवैद्य " शुद्ध ३ सकुल २१ केवली "3 ५७२ १० करनेसें ! ५७४ २४ संसोरक १९८० १४ अनेकांतिक ५८२ १० एण्हविऊग ९८३ २२ मोक्षका मानके ५८४ १० ब्रह्माचारी ९९३ १२-१३ सो महाभिषेक श्रीमन्मु खंडके तिनके सामाचारी २१ वें बौद्धमतसें Jacobi, करने में तिस विषयक तहकी कानसें मोक्खो केवल सिद्धि उपधि श्रीजिनभद्रगणि जैनाभासाः मत्यनु अठ्ठ वृत्तिके सेवना मुक्ति कवल संकुल केवलि करनेसें ? (५) सांसारिक अनैकांतिक हविऊण मोक्षका हेतु मानके ब्रह्मचारी सो माला महाभिषेक के पूजन नैवेद्य
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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